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प्रो. वशिष्ठ अनूप एक विलक्षण गीतकार, ग़ज़लकार एवं मूर्धन्य आलोचक हैं। दुष्यन्त कुमार की ग़ज़ल परम्परा को जिन ग़ज़लकारों ने आगे बढ़ाया है, उनमें प्रो. वशिष्ठ अनूप का नाम अग्रणी है। सामाजिक चेतना से लैस इनके गीतों और ग़ज़लों में आमजन के प्रति गहरी संवेदना है। इन ग़ज़लों में वर्तमान जीवन की मुश्किलें हैं, चुनौतियाँ हैं, प्रतिरोध है, संघर्ष है, तो प्रेमपूर्ण भावात्मक सम्बन्ध भी हैं। इन ग़ज़लों में आँसू और आग एक साथ हैं।
प्रो. वशिष्ठ अपने पैंतीस वर्षों के प्राध्यापकीय दायित्वों के साथ-साथ साहित्य के उन्नयन के लिए भी निरन्तर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने यात्राएँ कीं, व्याख्यान दिये और अनेक संगोष्ठियाँ आयोजित कीं। विशेष रूप से हिन्दी ग़ज़ल के विकास में उनका योगदान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। उनकी रचना-यात्रा में सम्पादित पुस्तकों के अतिरिक्त अब तक गीत, ग़ज़ल और आलोचना की 38 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । वे आजकल काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद को सुशोभित कर रहे हैं।
दुष्यन्त के क्रान्तिकारी ग़ज़ल-संग्रह साये में धूप से प्रभावित होकर पिछले पचास वर्षों से अनेक ग़ज़लकार बहुत असरदार ग़ज़लें लिखते आ रहे हैं। इन्होंने बड़ी व्यापकता, गहनता एवं सूक्ष्मता से जीवन के विविध विषयों पर ग़ज़लें लिखी हैं, जिनमें हमारा परिवेश मुखरित हुआ है । किन्तु हिन्दी ग़ज़ल को आलोचना के क्षेत्र में उपेक्षित और अनदेखा किया गया। इधर पिछले कुछ वर्षों में ऐसे प्रतिभावान ग़ज़लकार सामने आये, जिन्होंने स्वयं हिन्दी ग़ज़ल-आलोचना का दायित्व अपने हाथों में लिया है। उनमें प्रो. वशिष्ठ अनूप का नाम सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने पहले हिन्दी ग़ज़ल पर डी.लिट्. किया और अब इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हिन्दी ग़ज़ल के निकष के माध्यम से हिन्दी ग़ज़ल-आलोचना की नयी ज़मीन तैयार की है। ग़ज़ल - आलोचना से सम्बन्धित उनकी तीन और पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
प्रो. वशिष्ठ ने इस ग्रन्थ में हिन्दी ग़ज़ल की तीनों पीढ़ियों के प्रमुख ग़ज़लकारों पर पूर्वाग्रह - रहित होकर वस्तुपरक अध्ययन, मूल्यांकन तथा चेतना-सम्पन्न विश्लेषण किया है। इन महत्त्वपूर्ण ग़ज़लकारों में प्रमुख हैं - दुष्यन्त कुमार, शमशेर, त्रिलोचन, नीरज, रामदरश मिश्र, सूर्यभानु गुप्त, कुँअर बेचैन, बालस्वरूप राही, शेरजंग गर्ग, शलभ, चन्द्रसेन विराट, भवानीशंकर, अदम गोंडवी, ज़हीर क़ुरेशी आदि... प्रो. वशिष्ठ ने इन ग़ज़लकारों के वैशिष्ट्य की पड़ताल करते हुए उन्हें मुख्य धारा की हिन्दी कविता के प्रमुख कवियों के तुल्य प्रमाणित किया है। निस्सन्देह यह एक श्रमसाध्य कार्य रहा होगा, लेकिन मुझे विश्वास है कि उनका यह ग्रन्थ समकालीन हिन्दी ग़ज़ल को परिभाषित करने हेतु एक अत्यन्त ज़रूरी पुस्तक साबित होगी ।
हिन्दी ग़ज़ल के निकष पुस्तक पढ़ने पर प्रो. वशिष्ठ की सूक्ष्म आलोचना-दृष्टि का पता चल जाता है। अपने आकलन में उन्होंने ग़ज़ल विधा के सभी तत्त्वों पर दृष्टि डाली है। बदलते वक़्त में जब ग़ज़ल की अन्तर्वस्तु और उसके अन्दाज़ दोनों बदल रहे हैं, वशिष्ठ अनूप उनके मूल्यांकन के लिए नये मानदण्डों की तलाश करते हैं और उनके आधार पर ग़ज़ल का मूल्यांकन करते हैं तथा ग़ज़ल के अध्येताओं के लिए भी इन निकषों की प्रस्तावना करते हैं । यह हिन्दी ग़ज़ल के लिए एक नूतन प्रयास है।
वास्तव में यह पुस्तक वशिष्ठ जी के आलोचनात्मक लेखन की ही नहीं, समकालीन काव्यालोचन की भी एक उपलब्धि बनकर प्रस्तुत हुई है। उम्मीद है कि यह पुस्तक हिन्दी ग़ज़ल-समीक्षा में भी एक नया आयाम जोड़ सकेगी और हिन्दी ग़ज़ल को विमर्श के परिसर में खींच कर लायेगी। निस्सन्देह, प्रो. वशिष्ठ की यह पुस्तक हिन्दी ग़ज़ल को परिभाषित करने की दिशा में एक नयी दृष्टि प्रदान करेगी।
- हरेराम समीप फ़रीदाबाद
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