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Bihari Ratnakar

Paperback
Hindi
9789362871268
1st
2024
360
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बिहारी रत्नाकर -

प्रस्तुत पुस्तक बिहारी - रत्नाकर में विशेषतः इस बात का ध्यान रखा गया है कि पाठकों की समझ में शब्दार्थ तथा भावार्थ भली-भाँति आ जायें । दोहे के शब्दों के पारस्परिक व्याकरणिक सम्बन्ध तथा कारक इत्यादि को स्पष्ट रूप में प्रकट करने का भी यथासम्भव प्रयत्न किया गया है। प्रत्येक दोहे के पश्चात् उसके कठिन शब्दों के अर्थ हैं और फिर उस दोहे के कहे जाने का अवसर, वक्ता, बोधव्य इत्यादि, 'अवतरण' शीर्षक के अन्तर्गत बतलाये गये हैं । उसके पश्चात् 'अर्थ' शीर्षक के अन्तर्गत दोहे का अर्थ लिखा गया है। अर्थ लिखने में जो कोई शब्द अथवा वाक्यांश कठिन ज्ञात हुआ, उसका अर्थ, उसके पश्चात् गोल कोष्ठक में दे दिया गया है और जिस किसी शब्द अथवा वाक्यखण्ड का अध्याहार करना उचित समझा गया, वह चौखूँटे कोष्ठक में रख दिया गया है । जहाँ कहीं कोई विशेष बात कहने की आवश्यकता प्रतीत हुई, वहाँ टिप्पणी रूप से एक भिन्न वाक्य-विच्छेद (पैराग्राफ) में लिखी गयी है ।

इस टीका में अधिकांश दोहों के अर्थ अन्यान्य टीकाओं से भिन्न हैं। उनके यथार्थ होने की विवेचना पाठकों की समझ, रुचि तथा न्याय पर निर्भर है।

श्री जगन्नाथदास 'रत्नाकर' (Shree Jagannathdas 'Ratnakar)

श्री जगन्नाथदास 'रत्नाकर' 1866 ई. में काशी के वैश्य घराने में जन्म। शिक्षा का आरम्भ उर्दू-फारसी से हुआ। फिर छठे वर्ष में हिन्दी की पढ़ाई शुरू की । क्वीन्स कॉलेज बनारस से 1891 ई. में बी.ए. पास करने के बा

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