स्कंदगुप्त का विक्रमादित्य होना तो प्रत्यक्ष प्रमाणों से सिद्ध होता है । शिप्रा से तुम्बी में जल भरकर ले आनेवाले, और चटाई पर सोने वाले उज्जयिनी के विक्रमादित्य स्कन्दगुप्त-साम्राज्य के खण्डहर पर भोज के परमार पुरखों ने मालव का नवीन साम्राज्य बनाया था, परन्तु मातृगुप्त के कालिदास होने में अनुमान का विशेष सम्बन्ध है । हो सकता है कि आगे चलकर कोई प्रत्यक्ष प्रमाण भी मिल जाए, परन्तु हमें उसके लिए कोई आग्रह नहीं। इसलिए हमने नाटक में मातृगुप्त का ही प्रयोग किया है। मातृगुप्त का कश्मीर पर शासन और तौरमाण का समय तो निश्चित-सा है। विक्रमादित्य के मरने पर उसका कश्मीर-राज्य वह छोड़ देता है, और वही समय सिंहल के कुमार धातुसेन का निर्धारित होता है। इसलिए इस नाटक में धातुसेन भी एक पात्र है। बन्धुवर्म्मा, चक्रपालित, पर्णदत्त, शर्वनाग, भटार्क, पृथ्वीसेन, खिंगिल, प्रख्यातकीर्ति, भीमवर्म्मा (इसका शिलालेख कौशाम्बी में मिला है) गोविन्दगुप्त, आदि सब ऐतिहासिक व्यक्ति हैं ।
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