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प्रयागराज और कानपुर के बीच का ऐसा भूभाग, जिसकी उत्तर दिशा में सुरसरि की पौराणिक धारा लाखों वर्षों से आज भी प्रवहमान है, और दक्षिण दिशा में सूर्यपुत्र यमराज की श्यामला बहन यमुना (कालिंदी) की धारा निनादित है, पौराणिक आख्यानों में 'अंतर्वेद' के नाम से अभिहित है। इसी 'अंतर्वेद' नामक भूक्षेत्र के मध्य में गंगा-यमुना के दोआब में स्थित तथा पूर्व में कौशांबी और पश्चिम में कानपुर नगर जनपदों की सीमाओं से घिरा हुआ 4,152 वर्ग किलोमीटर का परिक्षेत्र वर्तमान में फतेहपुर जनपद के नाम से जाना जाता है। वेदों-पुराणों के युग से लेकर समकालीन युग तक गंगा-यमुना के बीच स्थित फतेहपुर की पवित्र, हरी-भरी, संघर्षों की गाथा से संपृक्त, अत्यंत उर्वर और शस्य-श्यामला धरती भारत के गौरव को सदैव बढ़ाती आई है।
पौराणिक काल के बहुत बाद में फतेहपुर जनपद इतिहास और बौद्ध साहित्य में वर्णित भारतीय सोलह महाजनपदों में से एक 'वत्स' का भी हिस्सा रहा है। उस समय कौशांबी नगरी वत्स महाजनपद की राजधानी हुआ करती थी महाजनपद काल से लेकर मध्य काल तक की अनेक ऐतिहासिक कड़ियों के बाद इतिहास-ग्रंथों को खँगालने पर ज्ञात होता है कि मध्य काल में फतेहपुर जिले का एक बड़ा हिस्सा अर्गल के राजाओं के कब्जे में था और तत्कालीन कन्नौज साम्राज्य का हिस्सा था। मुस्लिम काल के प्रारंभिक दौर में इसे कोड़ा परगना में शामिल कर लिया गया था और पंद्रहवीं शताब्दी में यह जौनपुर के अल्पकालिक राज्य का हिस्सा बना लिया गया था। अकबर के समय में फतेहपुर जिले का पश्चिमी आधा हिस्सा कोड़ा परगना का हिस्सा था, जबकि पूर्वी आधा कड़ा में शामिल था। अकबर ने इन परगनों को समाप्त कर 'फतेहपुर-हसवा' परगना बनाया था।
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