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Lili Aur Anya Kahaniyan

Hardbound
Hindi
9789350726563
1st
2024
116
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निराला का साहित्यिक व्यक्तित्व अत्यन्त गरिमामण्डित है। वे युग-द्रष्टा और युग-द्रष्टा साहित्यकार थे। भक्ति साहित्य में जो स्थान तुलसीदास का है, वही स्थान छायावाद में निराला का है । निराला भी उसी प्रकार छायावाद का अतिक्रमण करते दीखते हैं, जैसे भक्तिकाल में रहते हुए भी तुलसीदास ने किया था। दोनों ही परवर्ती साहित्य के प्रेरणास्रोत बने हुए हैं । डॉ. रामविलास शर्मा ने निराला के साहित्य की ऊर्जा का मुख्य स्रोत उनके जीवन-संघर्ष को बताया। डॉ. शर्मा के अनुसार निराला का अपना जीवन-संघर्ष, देश की जनता के संघर्ष से घुल-मिलकर एक हो गया था।

यह संघर्ष मनुष्य की मुक्ति का संघर्ष रहा, जिसमें मनुष्य किसी धर्म, जाति, वर्ण या देश का नहीं रह जाता । निराला जी स्वयं कहते हैं कि “समस्त विश्व के मनुष्य हमारी मनुष्यता के दायरे में आ जायें !” वे जिस प्रकार अपने काव्य में उस मनुष्य की तलाश करते हैं, कहानियों व उपन्यासों में भी उसी तरह खोजते दीखते हैं। साहित्य में अन्ध-परम्परा और प्राचीन रूढ़िवाद से निराला दुःखी थे। ‘उपन्यास - साहित्य और समाज' में वे लिखते हैं- " उपन्यास में वास्तविक जीवन का चित्रण होना चाहिए। जहाँ जीवन दागी होकर संजीवनी शक्ति से रहित हो जाता है, वहाँ उसे नयी प्रथा से सँवारकर या प्रहार द्वारा नष्ट करके औपन्यासिक नवीन चित्रण का समावेश अपरिहार्य है ।" निराला को कथा - साहित्य में कोरा आदर्शवाद नहीं पसन्द था। वे आदर्शवाद के साथ यथार्थवाद की तलाश में लगे रहते थे। उन्होंने साहित्यिक, सामाजिक और राजनीतिक विसंगतियों को गूँथते हुए कहा-“राजनीति के मैदान में जिस प्रकार बड़ी-बड़ी लड़ाइयों के लिए सिर उठाना ज़रूरी होता है, उसी तरह साहित्य के मैदान में भी हस्तक्षेप ज़रूरी है ।"

- भूमिका से

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (SuryaKant Tripathi 'Nirala')

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (जन्म: 21 फ़रवरी 1896, निधन 15 अक्टूबर 1961 )निराला जी का नाम मूलतः छायावाद से जोड़ा जाता है, किन्तु उनके कृतित्त्व और व्यक्तित्त्व ने समूची सदी के साहित्य परिदृश्य को प्रभ

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