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Marwadi Rajbadi

Kusum Khemani Author
Hardbound
Hindi
9788119014569
1st
2024
88
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मारवाड़ी राजबाड़ी की उस छोरी ने अपनी बातों में हरियाणवी मिश्रित मारवाड़ी भाषा की लचक और लहजे का जो 'छौंक' लगाया था उसे सुनते ही वह साढ़े छह फीटिया साफ़ाधारी इतना ख़ुश हुआ कि उसने हुमक कर उस गुलाबी-परी को अपनी गोद में उठाकर कहा, “हे मेरी लाडो ! जलसे का मतलब होवे है, कई तरियाँ के नाच गाणे, जिसमें ज़मींदार साहब के ख़ास मेहमान आवेंगे।” “नाच भी होवेगा ठाकरा जी।" “हाँ, बेबी साहिबा, वो तो होणा ही है।” यह सुनते ही वह महारानी ठाकरा जी की गोद से ऐसी तेज़ी से फिसली जैसे बच्चे फिसलने से फिसलते हैं। उसकी इस हरकत से बेचारे ठाकरा जी तो ऊक-चूक हो गये और ओय! ओय! करते हुए उसे सँभालने के लिए तेज़ी से आगे बढ़े ही थे कि बहादुर ने उनकी पीठ को दिलासा में थपथपाकर कहा, “साबजी उसको कुछ नहीं होगा। आप उसको जानता नहीं है, ऊपर आकाश में जब भगवान बदमाशी बाँटता था, तब इसने उसे अपना सिर में सबसे जादा भर लिया था।"
- इसी पुस्तक का एक अंश

कुसुम खेमानी (Kusum Khemani)

कुसुम खेमानी

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