क्नुत हाम्सुन - भूख, पान, माटी की फ़सल इत्यादि उपन्यासों के साथ नोबेल पुरस्कार विजेता क्नुत हाम्सुन ने विश्व-साहित्य में अपनी विशिष्ट जगह बनायी है। यूरोप के धुर उत्तरी सीमान्तों से आया यह लड़का जिसने केवल 252 दिन की तालीम हासिल की, वह बड़ा होकर यूरोपीय महाद्वीप के विस्तार पर लेखकों की कई पीढ़ियों को मुतासिर करने वाला था। टॉमस मान्न के अनुसार "नोबेल पुरस्कार से ऐसे सुपात्र को पहले कभी नहीं नवाज़ा गया।" हर्मन हेस्स हाम्सुन को "मेरा प्रिय लेखक" कहते थे। आइज़ेक बाशेविस सिंगर का कहना है कि "हाम्सुन अपने हर पहलू में साहित्य की आधुनिक शैली के जनक हैं उनकी व्यक्तिपरकता, आंशिक शैली, उनके द्वारा - फ्लैशबैक का उपयोग, उनकी प्रगीतात्मकता ।
लेकिन क्नुत हाम्सुन उन कलाकारों और बुद्धिजीवियों की सूची में शामिल हैं जिन्होंने एक सर्वसत्तावादी राज्य की और नॉर्वे में काबिज़ नात्सी ताक़तों की तरफ़दारी करना सही समझा। लेखक का हाथ अभी रवानगी में था कि वह एडोल्फ़ हिटलर को सलाम करने उठा लिया गया। जब दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हुआ तो हाम्सुन पर देशद्रोह का इल्ज़ाम लगाया गया। जिस दिन अदालत ने फैसला सुनाया उन्होंने उस पाण्डुलिपि का अन्तिम वाक्य लिखा जो उनकी आख़िरी किताब होने वाली थी : घास ढँकी पगडण्डियाँ: "1948 का मध्य-ग्रीष्म दिवस । आज सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला दे दिया है, और में अपने लेखन का समापन करता
-इंगार स्लेहेन कूलुएन
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