इतिहास बनता समय केवल बीते ज़माने का लेखा-जोखा नहीं होता, बल्कि वर्तमान को समझने में मदद भी करता है। व्यक्ति तो केवल चरित्र है, माध्यम है समय को समझने के लिए। इतिहास में व्यक्ति की भूमिका महत्त्वपूर्ण होते हुए भी सीमित होती है। समाज और संस्कृति का फलक व्यापक है। समय की अविरल धारा में रास्ता बनाते शिलाखण्ड और उन पर अंकित होते पदचिह्न इतिहास भी हैं और वर्तमान की पहचान भी ।
यहाँ विरासत में उत्तराखण्ड के अंचल में बसा कौसानी है तो सफ़र की शुरुआत लखनऊ से होती है और ठहराव होता है अलीगढ़ में। लोगों के बीच काम करते हुए नित नये अनुभव, क्योंकि जो घर-बाहर समाज में हो रहा है, वह अक्सर ऊपर से दिखाई नहीं देता...और जो दिखता है, वह वास्तव में वैसा होता नहीं । दरअसल सत्ता और राजनीति का चोली-दामन का साथ रहा है। सामाजिक परिवर्तन की स्थिति एकाएक नहीं होती। कभी-कभी अनेक अन्तर्धाराएँ मुख्यधारा से अधिक प्रभावी हो जाती हैं जो साधारण स्थितियों में पहचानी नहीं जातीं।
इन संस्मरणों में अपने समय की शिनाख़्त और समय को पढ़ने की कोशिश है... ताकि सनद रहे ।
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