मैंने माण्डू नहीं देखा -
यह स्वदेश दीपक की सात साल लम्बी बीमारी के अनुभवों का दस्तावेज़ है । यह किताब न तो बाहरी समय का इतिहास है और न ही किसी मेडिकल जर्नल के लिए लिखा गया पेपर। नौ खण्डों में विभाजित इस कृति की विशिष्टता है सच का सामना करने के लिए चुनी गयी कोलाज शैली, जो शब्दों के मोंताज, नाटकीय संवादों और विभिन्न कालखण्डों में एक साथ यात्रा करती हुई काव्यात्मक तनाव को कभी बिखरने नहीं देती। ये कोलाज एक अँधेरी सुरंग में स्वदेश दीपक के सफ़र की कहानी कहते हैं, जिनसे वे न सिर्फ़ बाहर आये, बल्कि पलट कर उस सुरंग को देखने और उसका ब्योरा देने का साहस भी जुटा पाये।
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