चिरंजीव सिन्हा के इस संग्रह की कहानियाँ एक अलग दुनिया में ले जाती हैं। वो दुनिया जो हमारी देखी हुई अपनी सी दुनिया है लेकिन इन कहानियों में डूबकर जब हम बाहर निकलते हैं तो लगता है कि मानो हम एक नयी दुनिया से होकर लौटे हैं। पर्दे के पीछे की कहानियाँ या फिर यूँ कहें कि वो कहानियाँ जिनको कोई अख़बार जगह नहीं देता। कहानीकार का काम यही है कि वो ऐसे सवाल उठाये जो कोई नहीं उठा रहा। यह संग्रह इस काम को बखूबी करता है। इस कहानी संग्रह की आमुख कहानी को पढ़ते हुए दिल के हर कोने से चीख निकल जाती है। डर और अनहोनी के बीच से गुजरती हुई हर लाइन कभी तो रोंगटे खड़े कर देती है और कभी अयाचित और आशातीत प्यार-स्नेह आँखों में पसरे हताशा को परे धकेल सूखे कोरों को खुशी से नम कर देती है। आमुख कहानी लियो और इस संग्रह की अन्य इक्कीस कहानियाँ रहस्य, रोमांच से भरी हैं और इन सबके बीच सहज प्रवाह में बहती रहती है, प्यार की बूदों से नहाये इन्सानियत की सोंधी बयार। सच कहूँ तो इन कहानियों को पढ़कर आप यह कहे बिना नहीं रह पायेंगे “मैंने ऐसा पहले नहीं पढ़ा"
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