Bharat Mein Angrezi Raj

Sundarlal Author
Paperback
Hindi
9789352298037
1st
2021
360
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भारत में अंग्रेजी राज' पं. सुंदरलाल द्वारा लिखा गया स्वतंत्रता संग्राम का वह गौरव ग्रंथ है, जिसके 18 मार्च, 1938 को प्रकाशित होते ही 22 मार्च, 1938 को अंग्रेज सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया।

भारतीय इतिहास पर नई निगाह

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बौद्धिक प्रेरणा देने का श्रेय पं. सुंदरलाल, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सह-संस्थापक और प्रथम उप-कुलपति एवं ऑल इंडिया पीस काउंसिल ने अध्यक्ष, इलाहाबाद के सुप्रसिद्ध वकील जैसे उन कुछ साहसी लेखकों को भी है, जिन्होंने पद या परिणामों की चिंता किए बिना भारतीय स्वाधीनता का इतिहास नए सिरे से लिखा 'भारत में अंग्रेजी राज' में गरम दल और नरम दल दोनों तरह के स्वाधीनता संग्राम योद्धाओं को अदम्य प्रेरणा दी।

सर्वज्ञात है कि 1857 के पहले स्वाधीनता संग्राम को सैनिक विद्रोह कहकर दबाने के बाद अंग्रेजों ने योजनाबद्ध रूप से हिंदू और मुसलिमों में मतभेद पैदा किया। 'फूट 'डालो और राज करो' की नीति के तहत उन्होंने बंगाल को दो हिस्सों-पूर्वी और पश्चिमी में विभाजित कर दिया। पं. सुंदरलाल ने इस सांप्रदायिक विद्रोह के पीछे छीपे अंग्रेजों की कूटनीति तक पहुँचने का प्रयास किया। इसके लिए उन्होंने प्रामाणिक दस्तावेजों तथा विश्व इतिहास का गहन अध्ययन किया तो उनके सामने भारतीय इतिहास के अनेक अनजाने तथ्य खुलते चले गए। इसे बाद वे तीन साल तक क्रांतिकारी बाबू नित्यानंद चटर्जी के घर पर रहकर दत्तचित्त होकर लेखन और पठन-पाठन के काम में लगे रहे। इसी साधना के फलस्वरूप एक हजार पृष्ठों का 'भारत में अंग्रेजी राज' नामक ग्रंथ तैयार हुआ।

इसकी विशेषता यह थी कि इसका अधिकतर हिस्सा पं. सुंदरलालजी ने खुद अपने हस्तलेख से नहीं लिखा। पचासों सहायक ग्रंथ पढ़-पढ़कर, संदर्भ देख-देखकर वे हाशप्रवाह बोलते थे और प्रयाग के श्री विशंभर पांडे उनके बोले शब्द लिखते थे। इस प्रकार इसकी पांडुलिपि तैयार हुई। पर तब इस तरह की किताब का प्रकाशन आसान नहीं था। सुंदरलालजी मानते थे कि प्रकाशित होते ही अंग्रेजी शासन इसे जब्त कर लेगा। अतः उन्होंने इसे कई खंडों में बाँटकर अलग-अलग भागों में छपवाया। तैयार खंडों को प्रयाग में बाईंड करवाया गया और अंततः 18 मार्च, 1938 को पुस्तक प्रकाशित की गई।

सुन्दरलाल (Sundarlal )

मुजफ़्फ़रनगर से हाईस्कूल करने के बाद सुन्दरलाल जी प्रयाग के प्रसिद्ध म्योर कॉलेज में पढ़ने गये। वहाँ क्रान्तिकारियों से सम्पर्क रखने के कारण पुलिस उन पर निगाह रखने लगी। गुप्तचर विभाग ने उन

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