Sundarlal
पण्डित सुन्दरलाल का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले की गाँव खतौली में 26 सितम्बर सन् 1885 को तोताराम श्रीवास्तव के घर में हुआ था। खतौली में गंगा नहर के किनारे बिजली और सिंचाई विभाग के कर्मचारी रहते थे। इनके पिता तोताराम श्रीवास्तव उन दिनों वहाँ उच्च सरकारी पद पर थे। उनके परिवार में प्रायः सभी लोग अच्छी सरकारी नौकरियों में थे। बचपन से ही देश को पराधीनता की बेड़ियों में जकड़े देखकर उनके दिल में भारत को आज़ादी दिलाने का जज्बा पैदा हुआ। वह कम आयु में ही परिवार को छोड़ प्रयाग चले गये और प्रयाग को कार्यस्थली बनाकर आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े।
मुजफ़्फ़रनगर से हाईस्कूल करने के बाद सुन्दरलाल जी प्रयाग के प्रसिद्ध म्योर कॉलेज में पढ़ने गये। वहाँ क्रान्तिकारियों से सम्पर्क रखने के कारण पुलिस उन पर निगाह रखने लगी। गुप्तचर विभाग ने उन्हें भारत की एक शिक्षित जाति में जन्मा असाधारण क्षमता का युवक कहा, जो समय पड़ने पर तात्या टोपे और नाना फड़नवीस की तरह ख़तरनाक हो सकता है।
1907 में वाराणसी के शिवाजी महोत्सव में 22 वर्षीय सुन्दरलाल ने ओजस्वी भाषण दिया। यह समाचार पाकर कॉलेज वालों ने उसे छात्रावास से निकाल दिया। इसके बाद भी उन्होंने प्रथम श्रेणी में बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। अब तक उनका सम्बन्ध लाला लाजपतराय, लोकमान्य तिलक, अरविन्द घोष तथा रासबिहारी बोस जैसे क्रान्तिकारियों से हो 'चुका था। दिल्ली के चाँदनी चौक में लार्ड हार्डिंग की शोभायात्रा पर बम फेंकने की योजना में सुन्दरलाल जी भी सहभागी थे।
उनकी प्रखर लेखनी ने 1914-15 में भारत की सरज़मीं पर गदर पार्टी के सशस्त्र क्रान्ति के प्रयास और भारत की आज़ादी के लिए ग़दर पार्टी के क्रान्तिकारियों के अनुपम बलिदानों का सजीव वर्णन किया है। लाला हरदयाल के साथ पण्डित सुन्दरलाल ने समस्त उत्तर भारत का दौरा किया था। 1914 में शचीन्द्रनाथ सान्याल और पण्डित सुन्दरलाल एक बम परीक्षण में गम्भीर रूप से जख्मी हुए थे।
उत्तर प्रदेश में क्रान्ति के प्रचार हेतु लाला लाजपतराय के साथ सुन्दरलाल जी ने भी प्रवास किया। कुछ समय तक उन्होंने सिंगापुर आदि देशों में क्रान्तिकारी आन्दोलन का प्रचार किया। इसके बाद उनका रुझान पत्रकारिता की ओर हुआ। उन्होंने पण्डित सुन्दरलाल के नाम से 'कर्मयोगी' पत्र निकाला। इसके बाद उन्होंने अभ्युदय, स्वराज्य, भविष्य और हिन्दी प्रदीप का भी सम्पादन किया। ब्रिटिश अधिकारी कहते थे कि पण्डित सुन्दरलाल की क़लम से शब्द नहीं बम-गोले निकलते हैं। शासन ने जब प्रेस एक्ट की घोषणा की, तो कुछ समय के लिए ये पत्र बन्द करने पड़े। इसके बाद वे भगवा वस्त्र पहनकर 'स्वामी सोमेश्वरानन्द' के नाम से देश भर में घूमने लगे। इस समय भी क्रान्तिकारियों से उनका सम्पर्क निरन्तर बना रहा और वे उनकी योजनाओं में सहायता करते रहे। सन् 1921 से 1942 के दौरान उन्होंने गाँधी जी के सत्याग्रह में भाग लेकर 8 बार जेल की यात्रा की।