Yalgar

Paperback
Hindi
9789389563788
1st
2020
136
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यह कविता बॉम्बस्फोट का सच हैं!

खूनी है यह कविता!

खेतों की इन मेंड़ों को

कारावास की इन दीवारों को

शीशमहल की इन खिड़कियों को

पता नहीं है मेरे शब्दों में का सन्तप्त सौन्दर्य ?

ये तूफ़ान मेरे घमण्डी प्रश्वास से उठते हैं

मेरे हुंकार से प्रलय प्रसारित होती है

शोषितों के कण्ठ-कण्ठ में!

मेरी सख्त कलाई से इस देश का नया चेहरा उभर रहा है

मेरे शब्द-शब्द में सजा है नया इतिहास

इन शब्दों में दबोचा हुआ एक दुख है

इन अक्षरों में एक खण्डित सुख है।

शब्दों पर फैल रहा है अर्थ कोड़ों-सा

अक्षरों में से शब्द फैल रहे हैं।

लैस की गयी बन्दूक़-से

मेरे आसपास का धधकता असन्तोष

मुझे ही प्रज्वलित कर रहा है क़लम में से

कल के सन्दर्भ के लिए!

मेरे पैरों तले जल रही रेत और

आसमान आँसू टपका रहा है

मैं भयभीत हूँ किसी अनाहूत डर से लेकिन

सधी हुई लापरवाही से ।

बोल रहा हूँ कल के बारे में!

कल मैं रहूँगा नहीं रहूँगा।

लेकिन कल के अपने स्वागत हेतु

अपने ये शब्द-फल

अपने शिलालेख के रूप में छोड़े जा रहा हूँ।

पद्मजा घोरपड़े (Padmaja Ghorpade )

एसोसिएट प्रोफ़ेसर, हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं भूतपूर्व प्रभारी प्राचार्य, स.प. महाविद्यालय, पुणे।प्रकाशित पुस्तकें : कुल 38; समीक्षा, कविता, कहानी, पत्रकारिता, जीवनी तथा अनुवाद लेखन हेतु राष्ट्र

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शरणकुमार लिंबाले  (Sharankumar Limbale)

शरणकुमार लिंबाले  जन्म : 1 जून 1956 शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. हिन्दी में प्रकाशित किताबें : अक्करमाशी (आत्मकथा) 1991, देवता आदमी (कहानी संग्रह) 1994, दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र (समीक्षा) 2000, नरवानर (उपन्

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