ग़म की मानी हुई हक़ीक़त को मीर तक़ी मीर से ले कर आज तक के शायरों ने साहित्य की विषय-वस्तु बनाया है। हमारी शायरी में इस ग़म की कहीं हल्की और कहीं गहरी परछाइयाँ मिलती चली आयी हैं, लेकिन हमारे इस कालखण्ड का विचारक वसीम बरेलवी इस आन्तरिक व्यथा से समाजी और इन्सानी ग़मों का आनन्ददायक उपचार तलाश करता है । उसके यहाँ वह रचनात्मकता है, जो इन्सानी ज़िन्दगी के त्रासद पहलू को भरपूर अनुभूति के साथ पेश करने में समर्थ है और उसके आनन्द और उत्साहवर्द्धक भविष्य को जन्म देने की कोशिश करता है । इसीलिए उसने प्रयास किया है कि वह इस धरती पर बसने वाले तमाम इन्सानों की छोटी-बड़ी आन्तरिक और बाहरी समस्याओं को सिर्फ़ पेश करके न छोड़ दे, बल्कि ऐसा रास्ता भी दे जिस पर चल कर इन्सान स्थायी आनन्द और आसमान की रोशन बुलन्दियों को छू ले ।
शमीम करहानी
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