.... और एक दिन सेंट मैरी पागलखाने के पुराने, बूढ़े, चिड़चिड़े नौकर कन्हाई से सफाई करते समय अचानक महात्मा गांधी की वह मूर्ति जो इक्कीस साल से डॉ. विलियम की मेज़ की दराज़ में रखी थी ... गिर कर टूट जाती है। ... वह उसे कूड़ेदान में फेंक देता है।
...इसी पागलखाने के दो पागल यह सब देखकर ... रातों-रात बन्द कमरे की खिड़की के सींखचे तोड़कर निकल भागते हैं। ... पागल तो पागल ही ठहरे.... कूड़े के ढेर से बापू की मूर्ति के टुकड़े उठाये उन्होंने और पहुँच गये बीच सड़क पर । यही नहीं, हर आने-जाने वाले राहगीर से उन्होंने पूछना भी शुरू कर दिया... क्यों भाई बापू को जानते हो?... अरे तुम बापू को नहीं जानते? बापू जो अपने देश के राष्ट्रपिता हैं... सारी दुनिया के बापू हैं... तुम उन्हें नहीं जानते? भाई ! बता दो न कहाँ हैं बापू? बापू का पता पूछते वह दोनों पागल देश और समाज के अनेक चेहरों से टकराते हैं... विभिन्न परिस्थितियों से जूझते हैं और जब उन्हें मालूम पड़ता है कि असलियत क्या है?... सच्चाई क्या है? ...और बापू के राम राज्य का सपना धरातल पर कैसे उतरा... • तो वह ठगे से यही सोचते रह जाते हैं... बापू का देश यही है क्या? ...
चर्चित नाटककार सुशील कुमार सिंह का एक और सशक्त नाटक... सामाजिक व्यंग्य.... बापू की हत्या हजारवीं बार पढ़ेंगे... देखेंगे... चौंक जायेंगे ।
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