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Abhyutthanam

Hardbound
Hindi
9789357750226
2nd
2024
398
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अभ्युत्थानम्भा - भारत का इतिहास कदाचित सम्पूर्ण विश्व की सभी सभ्यताओं से अधिक पुराना है, परन्तु उनमें से कई कालखण्डों को मिथक कहकर नकार दिया जाता है। तथापि, जिसे नकारा नहीं जा सकता, जिसके बारे में स्वदेशी एवं तत्कालीन राष्ट्रों के अभिलेखों एवं साहित्यों में स्पष्ट उल्लेख है, वह इतिहास मौर्य साम्राज्य की स्थापना एवं अलेक्जेंडर (सिकन्दर) के भारत अभियान से आरम्भ होता है ।

संसार अलेक्जेंडर को महान कहता है। वह विश्व विजय हेतु निकला था, परन्तु भारत से टकराकर उसे वापस लौटना पड़ा। वह, जो अपने पिता द्वारा निर्मित प्रबल राष्ट्र को, पर्शिया के लिए सज्ज सेना को अधिकृत कर आगे बढ़ा, महान कहलाया। वहीं शून्य से निकला एक भारतीय युवक है, जो आयु में अलेक्जेंडर से लगभग आधी उम्र का था, उसने यूनानियों से अधिक प्रबल सेना का निर्माण किया, यूनानियों को पराजित किया और अलेक्जेंडर से अधिक विशाल भारतीय साम्राज्य की स्थापना की ।

आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य ने अर्थशास्त्रम् जैसे सुविख्यात ग्रन्थ की रचना की है। विद्वानों में मतभेद है कि उन्होंने ही वात्स्यायन के नाम से कामसूत्रम् की रचना की है । उन्होंने न्यायभाष्य की रचना भी की है । उनसे यह अपेक्षा करना कि व्यक्तिगत अपमान से क्षुब्ध होकर वे नन्द को हटाकर किसी युवक को मगध के सिंहासन पर बिठा देंगे, वह भी मात्र बालकों के एक राजा - प्रजा के खेल को देखकर, यह उस विलक्षण मेधावान मनुष्य के प्रति अन्याय सा लगता है।

भारतीय इतिहास में सदैव ही पराजयों को, नकारात्मकताओं को अधिकाधिक चित्रित किया गया है। यवनों के आक्रमण को बस 'सिकन्दर वापस लौट गया' कहकर तनुकृत किया जाता । यदि इतना ही था तो वे वाहीक स्त्रियाँ कौन थीं, जिन्होंने अन्तिम श्वास तक युद्ध किया? उन कठों का क्या जो समाप्तप्राय हो गये ? मात्र आम्भी, पर्वतेश्वर और मगध ही थे तो वे अश्मक, अभिसार, ग्लुचुकायन, शिवि, अम्बष्ठ कौन थे? यवन मगध से भयभीत होकर वापस लौट गये तो मगध से भी पहले यौधेयों का क्या, जिनका शासन पाँच हज़ार सभासदों के हाथों में था और प्रत्येक सभासद राज्य की सेना में एक-एक हाथी प्रदान करता था ? विदेशी आक्रमण के समय भी हम आपस में लड़ते थे, तो उन चिरशत्रु मालवों और क्षुद्रकों की सन्धि का क्या, जिन्होंने शत्रुता भुलाने के लिए बीस हज़ार से अधिक परस्पर वैवाहिक सम्बन्ध बनाये I आग्रेय स्त्रियों का अग्निस्नान, ब्राह्मणक जनपद के निवासियों के वृक्षों से लटके शव, विजित प्रदेशों का विद्रोह। ऐसी अनेक बातें हैं, जिनके बारे में बहुत कम लिखा गया है।

आशा है कि आपको प्रस्तुत पुस्तक में राजनीति, कूटनीति, शौर्य, पराक्रम, उदारता, प्रतिशोध, छल का रस प्राप्त होगा। घटनाएँ इतिहास से ली गयी हैं, परन्तु यह कृति है एक उपन्यास ही ।

अजीत प्रताप सिंह (Ajeet Pratap Singh )

अजीत प्रताप सिंह यूँ तो अजीत कम्प्यूटर के छात्र रहे हैं, परन्तु उनकी रुचि साहित्य में, खासकर उपन्यास में और उसमें भी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के उपन्यासों में रही है। मास्टर ऑफ़ कम्प्यूटर एप्लिके

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