चाँदनी बेगम - ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित उर्दू की प्रसिद्ध कथाकार क़ुर्रतुलऐन हैदर का यह उपन्यास 'चाँदनी बेगम' कथ्य और शिल्प के स्तर पर दरअसल एक ऐसा प्रतीकात्मक उपन्यास है जिसके कई-कई पहलू हैं; और कथानक के धागे में समर्थ कथाकार ने सबको इस तरह पिरोया है कि किसी को अलग करके नहीं देखा जा सकता। उपन्यास के केन्द्र में है ज़मीन की मिल्क़ियत की जद्दोजहद—यानी लखनऊ की 'रेडरोज़' की कोठी और उसके इर्द-गिर्द रचे-बसे बदलते समाज तथा रिश्तों और चरित्रों की रंगारंग तसवीरें। इन्सानी बेबसी की इतनी जानदार और सच्ची अभिव्यक्ति इस उपन्यास में है कि चरित्रों के साथ पाठक का एक हमदर्द जुड़ाव हो जाता है। भाषा की दृष्टि से भी 'चाँदनी बेगम' बेजोड़ है और कुर्रतुलऐन हैदर ने कहानी और माहौल के हिसाब से इसका बेहद ख़ूबसूरती के साथ इस्तेमाल किया है। समूचे उपन्यास में एक ओर जहाँ आम लोगों की बोलीबानी में पूर्वी और पश्चिमी उर्दू के साथ अवधी, भोजपुरी और पछाँही हिन्दी है; वहीं लखनवी उर्दू की भी छटाएँ हैं। नतीजतन उपन्यास का सारा परिवेश सहज ही अपनी अमिट छाप बनाता है। कहना न होगा कि एक नये अन्दाज़ में लिखे गये इस उपन्यास को पढ़ना हिन्दी पाठकों के लिए एक नया अनुभव देगा। प्रस्तुत है 'चाँदनी बेगम' का यह नया संस्करण।
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