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Aaj Ki Pukar

Paperback
Hindi
9789350727997
1st
2014
48
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₹60.00

आज की पुकार -
21 वीं शताब्दी अपनी अनेक असाधारण विशेषताओं की गुणवत्ता लिए हुए है। विज्ञान की अभूतपूर्व प्रगति, औद्योगिकी और प्राविधिक यन्त्रों को चकाचौंध कर देने वाले विकास मानव-संसार के उपयोगी साधन...। हम सब बख़ूबी इससे परिचित हैं और ख़ूब फायदा उठा रहे हैं। अक्सर जो चीज़ समक्ष नहीं होती, यह कहूँ जो विगत अवधि में इतनी मुखर हो सामने नहीं आयी थी—वह है परिवर्तन की स्वचालित गति की स्वायत्तता, जो अपने अन्तर्निहित नियमों द्वारा परिचालित नहीं होती। मानव उसका संचालक अवश्य है किन्तु एक हद तक। तदुपरान्त परिवर्तन का संवेग उसकी इच्छा और संकल्प शक्ति पर नहीं अपितु स्वयं अपनी ऐच्छिकता से चलता जाता है। घटनाएँ घटती हैं इसलिए नहीं कि मानव उसे चाहता है, इसलिए भी नहीं कि उपयोगी और वांछनीय है, अपितु वे अपनी होने की परवशता में आबद्ध है। आकलन-प्राक्लन करती मेरी दृष्टि यह देखती है कि एक उपमहाद्वीप जो कभी वेदों के अथाह मन्त्रों से समस्त विश्व को आलोकित करता था, सृष्टि के रहस्य जिसके उपनिषदों के चिन्तन में प्रत्यक्ष हो उठते थे, जिसने सर्वदा विश्व को ज्ञान के आलोक से संपृक्त किया-आज एकाएक पतन की ओर रुख किये है। क्यों परिवर्तित हो गया है?

आज अपने देश की सीमाएँ इतनी अधिक संवेदनशील, असन्तोषजनक, ध्वंसकारी हैं कि हिंसा, आतंक, शोषण-उत्पीड़न, ड्रग-सेवन, सामूहिक बलात्कार, अपहरण, ख़ून-खराबा आदि वैश्विक समस्याएँ बनी हुई हैं। ऐसे विषाक्त वातावरण में आचरण की निर्मलता पर बल देना किसी मन्दिर, मठ, गिरजाघर या चैत्यालय के उन उपदेशों जैसे लगते हैं, जिस पर उसका उपदेष्टा भी उसके अनुरूप पवित्र आचरण सम्भवतः न कर सके।


डॉ. मधु धवन (Dr. Madhu Dhawan)

डॉ. मधु धवन

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