धूमिल ने कहा था, लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो, पूछो घोड़े से, जिसके मुँह में लगाम है। ओड़िआ सारला महाभारत की व्यास के ग्रन्थ से इतर कहानियाँ ऐसी ही हैं। हाशिये के लोगों की तरफ़ से कही गयी सुख-दुख की कथाएँ, जिनमें उनके अनुभव की अपनी ही झलक है।
- मृणाल पाण्डे
शूद्रमुनि का 'विष्णुपुराण' का यह एक भाषान्तर ही नहीं, अपितु नवजीवन प्राप्त होकर अनुवादिका अंकिता पाण्डेय द्वारा हिन्दी के विशाल पाठक- सम्प्रदाय के सामने अब उपस्थित है। जिन्होंने सारलादास की लेखनी की मधुरता और रोचकता को मूल ओड़िआ में नहीं पढ़ा अब इस अनुकृति के माध्यम से उनकी पिपासा और उत्सुकता बुझ पायेगी। मूल पाठ की सजीवता को अपनी कला से 'आसक्ति से विरक्ति तक' ग्रन्थ में ले आ सकना अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। इसके लिए अंकिता जी प्रशंसा-योग्य हैं, और इसलिए भी कि ये ऐसी कहानियाँ हैं जिनके बारे में मूल संस्कृत पाठ में इस रूप में वर्णन मिलता ही नहीं है। शतशः अभिनन्दन ।
- प्रो. उदय नारायण सिंह 'नचिकेता
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