Dalit Sahitya Ka Saundrya Shastra

Paperback
Hindi
9789350727751
2nd
2020
178
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दलित साहित्य का सौंदर्य शास्त्र -
"एक अनाम बालक पूछता है, “मैं कौन हूँ? मेरा दोष क्या है?" वही दलित चेतना में उसके सौन्दर्य-शास्त्र पर विवेचना करते हुए सत्य, शिवम्, सुन्दरम् को नये ढंग से परिभाषित करता है। क्योंकि उसने उसे अपनी दृष्टि से देखा और यह भी उसे सवर्णों के सत्य, शिवम्, सुन्दरम् से बिल्कुल भिन्न और विपरीत पाया है! 'अक्करमाशी' के उस बालक शरणकुमार लिंबाले से लेकर 'दलित साहित्य' के लेखक की यात्रा, मराठी दलित चेतना की ऊर्ध्वमुखी यात्रा रही है। यह पुस्तक मराठी दलित साहित्य का दस्तावेज़ी इतिहास तो है ही, साथ ही यह उसके अन्तर्द्वन्द्वों, विभिन्न साहित्यिक धाराओं से उसके सम्बन्ध, विभिन्न दार्शनिक, वैचारिक, राजनैतिक एवं साहित्यिक प्रणालियों से उसका तुलनात्मक अध्ययन भी है। यह पुस्तक दलित साहित्य की परिभाषा, व्याख्या, परिप्रेक्ष्य और दिशा की भी पड़ताल करने का एक यथार्थपरक अन्वेषण है। डॉ. लिंबाले ने बिना पक्षपात किये सभी के यानी दलित विरोधी व दलित पक्षधर दोनों के मन्तव्य उद्धृत किये हैं जिससे स्वतः ही पाठक तार्किक निष्कर्ष पर पहुँच जाता है जो डॉ. लिंबाले के इच्छित निष्कर्ष से मेल खाता है। कई जगह वे प्रश्नों के ज़रिये ही पाठक के मन में अपेक्षित उत्तर उतार देते हैं । यह डॉ. लिंबाले की सम्प्रेषणीयता की सफलता है। -रमणिका गुप्ता "

शरणकुमार लिंबाले  (Sharankumar Limbale)

शरणकुमार लिंबाले  जन्म : 1 जून 1956 शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. हिन्दी में प्रकाशित किताबें : अक्करमाशी (आत्मकथा) 1991, देवता आदमी (कहानी संग्रह) 1994, दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र (समीक्षा) 2000, नरवानर (उपन्

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