पूरी दुनिया में ब्रिटिश साम्राज्यवाद की जड़ें हिल चुकी थीं। सोवियत संघ और चीन जैसे देश प्रगति के नये आख्यान लिखने लगे थे। भारत कुल 65 दिन पहले शताब्दियों की गुलामी दरकिनार कर स्वतन्त्रता का राष्ट्रगान गा रहा था, ऐसे में 22 अक्टूबर 1947 को गोस्वामी तुलसीदास के गुरुस्थान सूकर क्षेत्र के समीप परसपुर (गोण्डा) के आटा ग्राम में स्व. श्रीमती माण्डवी सिंह व श्री देवकली सिंह के पुत्र के रूप में बालक रामनाथ सिंह का जन्म हुआ जो बाद में अदम गोंडवी के नाम से सुविख्यात हुए ।
अदम जी कबीर की परम्परा के कवि हैं, अन्तर यही कि अदम ने क़लम कागज छुआ पर उतना ही जितना किसान ठाकुरों के लिए ज़रूरी था ।
अदम जी ठाकुर तो हैं पर चमारों की गली झाँकने वाले ठाकुर नहीं, वरन् दलितों, वचितों और आम जनता का दर्द ही उनके रचनाकर्म की आत्मा है। उनकी ग़ज़लों पर सर्वप्रथम दुष्यन्त अलंकरण मिला। पूरे देश ने अनेक बार उन्हें सम्मानित किया, पर वे कभी भी पुरस्कार सम्मान के चक्कर में नहीं रहे।
अदम की ग़ज़लें सर्वहारा की लड़ाई खुद लड़ती हैं, कभी विधायक निवास में, कभी ग्राम प्रधान के घर, कभी वंचितों, पीड़ितों की गली में, कभी खेतों के बीच पगडण्डी पर अन्याय के विरुद्ध ।
अदम जी की इस कविताई में उन्हें सहयोग देती हैं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कमला देवी, प्रिय अनुज केदारनाथ सिंह व पुत्र आलोक सिंह आदि । जो इस फक्कड़ कवि की समस्त आदतों, वारदातों के बीच इन्हें सहेजकर रखते हैं, ताकि वे समय के साथ मुठभेड़ में आने वाली पीढ़ी के लिए एक नया मन्त्र फेंक सकें। चार्वाक की तरह, बुद्ध, गांधी और मार्क्स की तरह ।
- जगदीश पीयूष
अदम गोंडवी (Adam Gondavi)
अदम गोंडवी
अदम भीतर से नसीरुद्दीन शाह की तरह सचेत और गम्भीर हैं। धूमिल की तरह आक्रामक और ओम पुरी की तरह प्रतिबद्ध यह कुछ अजीब-सी लगने वाली तुलना है, पर इस फलक से अदम का वह चेहरा साफ़-साफ़ दिख सक