इतवार छोटा पड़ गया - राम तुम्हारे युग का रावण अच्छा था दस के दस चेहरे सब बाहर रखता था इतिहास जब वर्तमान से सन्दर्भ ग्रहण करता है तो एक ऐसा शे'र होता है, जो अपने समय का मुहावरा बन जाता है। प्रताप सोमवंशी का यह शे'र कुछ उसी तरह से आम-अवाम का हो चुका है। प्रताप के कुछ और अश्आर को सामने रखकर देखें कि हमारा कवि हमें अपने निजी अनुभवों में कहाँ तक शरीक कर पाता है। कवि द्वारा कही गयी बात जब हमें अपने मन की बात महसूस होती है तो यह उसकी सफलता की पराकाष्ठा होती है आज हम इतना व्यस्त जीवन गुजारते हैं या गुजारने को मजबूर हैं कि बिना ज़रूरत के अपने सगे-सम्बन्धियों, मित्रों और शुभचिन्तकों तक से मिलने की फुर्सत नहीं निकाल पाते। इस विचार को कैसी ख़ूबसूरती से शेर का रूप दिया है कवि ने- मिलने की तुझसे कोई तो सूरत बची रहे बेहतर है दोनों ओर ज़रूरत बची रहे तहज़ीबी तरक्की की बुलन्दियों पर पहुँच कर भी हमने अपनी आधी आबादी को किस हाल में रख छोड़ा है इसका छोटा-सा उदाहरण देकर कवि हमें अन्दर तक झकझोर कर रख देता है। यह जो इक लड़की पे हैं तैनात पहरेदार सौ देखती हैं उसकी आँखें भेड़िये खूंखार सौ प्रताप का एक इन्तिहाई ख़ूबसूरत शे'र मैं ख़ासतौर से पेश करना चाहता हूँ कि उसके आईने में मुझे स्वयं कवि का प्रतिबिम्ब भी नज़र आता है। शे'र यों है- कैसे कह पाता कोई, किरदार छोटा पड़ गया जब कहानी में लिखा अख़बार छोटा पड़ गया आज जो कुछ प्रताप सोमवंशी हैं वो तो हैं ही, मुझे उनका वह रूप याद आ रहा है जब वो मुझसे लगभग पच्चीस वर्ष पहले 'होनहार बिरवान के होत चीकने पात' की व्याख्या बनकर मिले थे। और कोई तफ़्सील तो नहीं बता सकता लेकिन इतना ज़रूर याद है कि एक शालीन और गम्भीर नौजवान मुझे मिला था और पहली ही नज़र में आँख के रास्ते से सीधे मेरे दिल में उतर गया था। मैंने उस नौजवान में एक समर्थ ग़ज़लकार होने की सम्भावना उसी समय देख ली थी। -एहतराम इस्लाम (भूमिका से)
प्रताप सोमवंशी (Pratap Somvanshi)
प्रताप सोमवंशी
जन्म : 20 दिसम्बर 1968। गाँव-हरखपुर (मानधाता), प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश।शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी)।पेशे से पत्रकार। साहित्य के अलावा कृषि, पर्यावरण, शिक्षा और राजनीति में विशेष रुचि।मला