Mera Kya

Paperback
Hindi
9789352291472
5th
2024
160
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लफ़्ज़ और एहसास के बीच का फ़ासिला तय करने की कोशिश का नाम ही शाइरी है। मेरे नज़दीक यही वो मक़ाम है, जहाँ फ़नकार आँसू को ज़बान और मुसकुराहट को इमकान दिया करता है, मगर ये बेनाम फ़ासिला तय करने में कभी-कभी उम्रें बीत जाती हैं और बात नहीं बनती। मैंने शाइरी को अपने हस्सासे वुजूद का इज़हारिया जाना और अपनी हद तक शे’री-ख़ुलूस से बेवफ़ाई नहीं की। यही मेरी कमाई है और आपके रूबरू लायी है। क्या खोया, क्या पाया, यह तो न पूछिये, हाँ, इतना ज़रूर है कि हिस्सियाती सतह पर शकस्तोरेख़्त ने मेरे शऊर की आबयारी में क्या रोल अदा किया, इसका पता आप ही लगा सकेंगे। शाइरी मदद न करती, तो ज़िन्दगी के अज़ाब जानलेवा साबित हो सकते थे। वह तो ये कहिये कि ज़रिय-ए-इज़हार ने तवाजुन बरकरार रखने में मदद की और जांसोज धूप में एक बेज़बान शजर की तरह सिर उठाकर खड़े रहने की तौफीक अता की। यह भी एक बड़ा सच है कि फ़नकार अपने अलावा सभी का दोस्त होता है, इसीलिए तख़लीक़कारी और दुनियादारी में कभी नहीं बनती। अब रही नफ़ा और नुक़सान की बात, तो इसके पैमाने फ़नकार की दुनिया में और हैं, दुनियादारों की दुनिया में और। यह सब कहकर मैं अपनी फ़ितरी बेनियाजी और शबोरोज की मस्रूफ़ियत के लिये जवाज़ जरूर तलाश कर रहा हूँ, मगर हक़ यह है कि मुतमइन मैं ख़ुद भी नहीं, फिर भला आप क्यों होने लगे? बहरहाल, मेरी फ़िक्री शबबेदारियों का यह इज़हार पेशे ख़िदमत है। शबबेदारियों के ये इज़हारिए अगर आपकी मतजससि खिलवतों के वज़्ज़दार हमसफ़र बन सके, तो मेरी खुदफ़रेबी बड़े कर्ब से बच जायेगी।

वसीम बरेलवी (Waseem Bareilavi)

प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी को मुशायरों की कामयाबी की जमानत माना जाता है। वसीम बरेलवी के गीत, ग़ज़ल और दोहे हिन्दी-उर्दू के सभी काव्य-प्रेमियों व श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। वसीम बरेलवी अम

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