तुम भी नहीं - अनिरुद्ध सिन्हा हिन्दी ग़जल के ऐसे सुप्रतिष्ठित ग़ज़लकार हैं, जो ग़ज़ल को एक गम्भीर सृजनात्मक वर्ग से युक्त एक समग्र उत्सर्गता चाहते हैं। ये जीवन की सार्वदेशिकता और शाश्वतता की तरह ही ग़ज़ल को भी सार्वदेशिक एवं शाश्वत स्वीकारते हैं। इन्होंने हिन्दी ग़जल की काव्य-शैली को एक विशिष्ट लय बोध एवं नवीनतम भाषागत संस्कार दिया है। संग्रह की ग़ज़लों में शब्दों में लालित्य, छन्दों में प्रवाह एवं लयात्मकता, भावों में मर्मस्पर्शी अनुभूतियों की झलक है। ग़ज़लों के शेर शक्ति-सौन्दर्य एवं ताज़गी से भरी एक सतत प्रवाहमान धारा हैं जो हमें गुदगुदाते भी है और आज की विसंगत परिस्थितियों के विरुद्ध लड़ने का हौसला भी देते हैं। हिन्दी ग़ज़ल आलोचना पर भी इन्होंने काफ़ी काम किया है। अनिरुद्ध सिन्हा ने ग़ज़लकार के रूप में जैसी प्रसिद्धि पायी है वैसी ही हिन्दी ग़ज़ल के आलोचक के रूप में भी पायी है। ग़ज़ल आलोचना को इन्होंने जिस गौरव के साथ अपने लेखन का आधार बनाया है, वह वरेण्य और प्रशंस्य है। इस संग्रह की ग़ज़लों में विरोध ही नहीं मानव-संस्कृति के आत्मसौन्दर्य की भव्य परिकल्पना भी है।
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