तितलियों के रंग - छन्दमुक्त एवं छन्दसिक कविता के अनूठे गुणों से सम्पन्न काव्यविधा अपने पारम्परिक स्वरूप के निरन्तर विकास के साथ प्रखर अभिव्यक्ति व सहज सम्प्रेषण की ऊँचाइयों को हुआ है। विधा के परिष्कार व उत्थान को वर्षों से निरन्तर समर्पित महत्वपूर्ण हस्ताक्षर शेषधर तिवारी की ग़ज़लों में वैचारिकता, प्रतीकात्मकता, सांकेतिकता, तग़ज़्ज़ुल, शेरियत के साथ-साथ शास्त्रीयता और आधुनिकता के तमाम तत्वों एवं प्रतिमानों का सुखद समावेश है। ये ग़ज़लें क्लासिकल रचाव में समकालीन भावबोध की ग़ज़लें हैं। प्रयागराज की पावन धरती से सम्बन्ध रखने वाले इस शायर की ग़ज़लों में विचार की त्रिवेणी है, रिवायत है, इश्क़ है, और प्रतिरोध के साथ परिवेश का सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक चित्रण भी है। शेषधर तिवारी अपने प्रस्तुत प्रथम ग़ज़ल संकलन 'तितलियों के रंग' की पहली ग़ज़ल के मत्ले में ही वे जीवन से प्रेम को औरों के चेहरे की हँसी के साथ जोड़ कर 'सर्वेभवन्तु सुखिनः' का सन्देश देते हैं। ये ग़ज़लें मनुष्य के जीवट, जिजीविषा और गरिमा को समर्पित ग़ज़लें हैं, इनमें शायर का जुनूने-इश्क़ भी अपने लौकिक व अलौकिक स्वरूपों में शानदार अभिव्यक्ति पाता है। उनके समृद्ध अनुभव जगत से उपजा उनका विशाल विमर्श कोष उनके इस संकलन के अधिकांश शेरों में सुन्दर व सार्थक अभिव्यक्ति पाता है। उनके शेर ज़िन्दगी के किसी भी शोबे में अपूर्णता से काम लेने वालों पर बेहद करारा तंज है। शेषधर तिवारी उस अँधेरे की शिनाख़्त भी कर लेते हैं जिसे उनका जुगनू के हक़ में बोलना खल जाता है। विभिन्न प्रचलित बह्रों में कहने के नयेपन व अलग दृष्टिकोण के साथ ग़ज़लें कहने वाले इस शायर के पास बड़ी से बड़ी बात को आसान से आसान और आमफ़हम शब्दों में कहने की आसानी है और यह आसानी चिराभ्यास से हासिल होती है। प्रस्तुत संकलन 'तितलियों के रंग' की ग़ज़लों में विमर्श विविधता, स्पन्दनशीलता, प्रखर अभिव्यक्ति, अद्भुत सम्प्रेषण सम्पन्नता, उद्धरणीयता, प्रभावोत्पादकता, भाषा की जीवन्तता एवं विधा की रचनात्मक नज़ाक़त की हिफ़ाज़त के गुण सम्मोहित करने वाले हैं। इनका जादू नि:सन्देह रसिकों के सर चढ़कर बोलेगा।—द्विजेन्द्र द्विज
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