मौनी - अड़तीस वर्ष की आयु में जब अनन्तमूर्ति का पाँच वर्ष पहले लिखा हुआ उपन्यास 'संस्कार' फ़िल्म के माध्यम से जनता के सामने आया तो वह रातों-रात प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँच गये। वैसे उनका लेखन बहुत पहले ही आरम्भ हो गया था। तेईस वर्ष की अवस्था में उनका पहला कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ। तब से उनके चार और संग्रह निकल चुके हैं, जिन्होंने कन्नड़ साहित्य में उन्हें विशिष्ट स्थान दिलाया है। अनन्तमूर्ति ने कहानी को आज के परिवेश में समाज के परम्परागत मूल्यों को परखने का माध्यम बनाया है। वाद-विवाद की तकनीक अपनाते हुए उन्होंने ऐसे पात्रों का सृजन किया है जो परम्पर विरोधी मूल्यों के मापदण्डों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अनन्तमूर्ति की कहानियों में उनकी बौद्धिकता पूरी तरह झलकती है लेकिन उनका उद्देश्य और गहनता उनके लेखन को विशेष रूप से समृद्ध करते हैं। अपनी कहानियों में उन्होंने अपने बचपन और कैशोर्य के भरे-पूरे अनुभव का प्रयोग किया है। प्रस्तुत कहानी-संग्रह में उनकी ऐसी ही बारह कहानियों का संकलन है। आशा है हिन्दी पाठक जगत् के लिए ये कहानियाँ एक नया आयाम देंगी।
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