ठूँठा आम - भारतीय सभ्यता, संस्कृति और समाज को प्रभावित करनेवाले कारकों का क्रिटीक है 'ठूँठा आम'। कृतिकार भगवतशरण उपध्याय भारतीय गौरव के गुणगायक रहे हैं। उन्होंने अपने लेखन में विविध भंगिमाएँ अपनाकर भारतीय परम्परा को प्रतिष्ठित किया है। यह एक ऐसा विषय है जिसके निर्वाह में अति बौद्धिकता की शुष्कता आ जाने का ख़तरा मँडराता रहता है लेकिन भगवत जी एक ऐसी मनोरंजक भाषा और शिल्प का चुनाव करते हैं जिसमें विषय की गम्भीरता भी सर्वथा सुरक्षित रहती है। पौराणिक से ऐतिहासिक, साहित्यिक से सड़क छाप और पुरातात्त्विक से अनागत क्षेत्रों तक वे इस सहजता से यात्रा करते हैं कि भाषा और दृश्यों का एक विशिष्ट रूप निर्मित हो जाता है। बारह शीर्षकों में विभाजित इस संकलन में तत्कालीन अनेक विषयों पर स्केच और रिपोर्ताज़ हैं, किन्तु इन सभी का केन्द्रीय भाव भारतीय समय और समाज का विमर्श ही है जो आज भी अपनी प्रासंगिकता के साथ महत्त्वपूर्ण है। पाठकों के विशेष आग्रह पर एक लम्बे अन्तराल के बाद प्रस्तुत है पुनर्नवा श्रृंखला के अन्तर्गत इस बहुचर्चित पुस्तक का नया संस्करण, नये रूपाकार में।
Log In To Add/edit Rating
You Have To Buy The Product To Give A Review