पुरातत्त्व का रोमांस - अतीत, अतीत का जिया जा चुका जीवन, श्वास राग-विराग और मृत्यु को पुनर्जीवन पुरातत्त्व से रोमांस करने वाले ही दे पाते हैं। अतीत के सहजीवी मनुष्य की संस्कृति और सभ्यता के साथ ही उसके स्वप्न का भी पुनर्दर्शन करते हुए मूलतः हम अपनी ही उद्भावना, विकास और परिणति का साक्षात् करते हैं। सहस्राब्दियों पूर्व के अज्ञात संसार को पुरातत्त्वशास्त्री जिस शैशव-कौतूहल के साथ उत्खनित करते हैं और रहस्यों, कल्पनाओं तथा अपूर्व सत्यों का समाहारी साक्ष्य उपलब्ध कराकर स्तब्ध कर देते हैं, उसी अन्दाज़ की प्रस्तुति भगवतशरण उपाध्याय अपनी शोधपरक कृति 'पुरातत्त्व का रोमांस' में करते हैं। भगवतशरण उपाध्याय सिर्फ़ लेखक की हैसियत से ही नहीं वरन् एक पुरातत्त्वशास्त्री की तरह भी अपरिचित समय, इतिहास और संज्ञान को सूत्रबद्ध करते हैं। किसी पुरातात्त्विक के प्रेम की कैफ़ियत और ज़रूरी ज़िद के विषय में कुछ भी कहना सर्वविदित सत्य का दुहराव ही होगा। उपाध्याय जी ने पुरातत्त्व के उन स्थलों को निकट से देखा है, कुछ की खुदाई में शामिल रहे हैं और कुछ की सामग्री खनिकों की डायरियों से ली हैं। इसलिए आलेखों की प्रामाणिकता जहाँ ज्ञान को समृद्ध करती है वहीं भाषा की तरलता पाठकों का गम्भीर मनोरंजन करती है। पुनर्नवा श्रृंखला के अन्तर्गत इस प्रसिद्ध कृति का पुनःप्रकाशन करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ सन्तुष्टि का अनुभव कर रहा है।
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