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प्रेमचन्द की बाल कहानियाँ-2 -
प्रेमचन्द अपने समाज के ऊँच-नीच, भेद-भाव, धाँधली, लोभ, ईर्ष्या, बैर आदि की भावना को गहरे तक जानते थे। इन तीनों कहानियों में लोगों के चरित्र और स्वभाव की बारीक पड़ताल की गयी है। समाज की इन बुराइयों पर नज़र रखना, उन्हें दूर करने के लिए समाज के सामने लाना और साहित्य में उसका वर्णन करते हुए, पाठक और विशेष तौर पर बच्चों को जाग्रत करना, लेखक का धर्म है।
प्रेमचन्द ने इन तीनों कहानियों में अपने इसी धर्म का निर्वाह किया है।
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