कुँवर नारायण संसार-1 -
वरिष्ठ कवि कुँवर नारायण की रचनात्मक यात्रा में पूरे पाँच दशकों का समय समाया हुआ है। यह देखना महत्त्वपूर्ण है कि एक ऐसा कवि, आलोचक, जिसकी सारी रचना-प्रक्रिया आदमी को बेहतर और मनुष्यतर बनाने में रही हो, की कविताएँ, कहानियाँ और विविध आलोचना कर्म हमें आधी सदी का लम्बा अन्तराल पूरा करके सुलभ हुए हैं। भाषा और अनुभव की विविधता, अभिव्यक्ति की सादगी, उदात्त मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा एवं रिश्तों की सहजता से कुँवर नारायण का रचना संसार समृद्ध होता है।
यह पुस्तक 'कुँवर नारायण : संसार' उनके अब तक के सृजन से एक चयन है; जिसमें कविताओं, कहानियों की वैचारिक दुनिया के साथ आलोचना, कलाओं तथा पर समय-समय पर रचनाकार के द्वारा लिखी गई सार्थक टिप्पणियाँ संकलित हैं। यह चयन एक रचनाकार को नजदीक से देखने-परखने का अवसर प्रदान करता है। इन दुर्लभ निर्मितियों से कुँवर नारायण का रचना संसार बृहत्तर होता है और मनुष्य को पूरी आत्मीयता के साथ संलाप का निमन्त्रण देता है।
अन्तिम पृष्ठ आवरण -
'अपने सामने' की कविताओं का रचनाकार एक परिपक्व और अपनी जगह दृढ़ व्यक्ति है। वह अकेला है, जैसा हर सम्वेदनशील बुद्धिजीवी को होना चाहिए। वह इतना सुरक्षित नहीं है, कि सारे संसार के अनुकूल हो जाये और इतना आत्मविश्वासहीन भी नहीं है कि भयातुर होकर चीखने लगे। -रघुवीर सहाय
कुँवर नारायण की कविता को पढ़कर जो निकलता है, वो परेशाँ ही निकलता है। उससे निकलकर चैन, शान्ति, सुख, सन्तोष जैसी भावनाएँ बनाये रखना कठिन है। यह कविता मानसिक द्वन्द्व को आत्मसात करने का निमन्त्रण है। -गिरधर राठी
कवि कुँवर नारायण ने अपना एक शिल्प विकसित कर लिया है, जिसमें कहने की सादगी, सम्वेदना की तीव्रता, रंगों की गहराई और ख़यालों की लकीरें साफ़ उभर कर आती हैं। फलतः न केवल आत्म पक्ष का, वरन् वाह्य पक्ष का भी चित्रण हो जाता है। -मुक्तिबोध
कुँवर नारायण के बिम्ब उनके कवि व्यक्तित्व के 'डाइनेमिक' आशयों की उपज हैं, यद्यपि उनका वाह्य रूपाकार तीव्र ऐन्द्रिय बौधों का रूपचित्र प्रस्तुत करता है। ....कुँवर नारायण के बिम्ब बौद्धिक भाव-संवेगों के रूप हैं। -मलयज
Kunwar Narain is a lonely poet and many of the poems of his first collection, Chakravyuh, are deeply imbued with the spirit of quest for a faith in a world of disintegrating values. -Nirmal Verma
आत्मजयी में नचिकेता का प्रश्न वस्तुतः दो पीढ़ियों का प्रश्न है। इस किताब ने मुझमें एक गहरी आस्था और लम्बी पारी खेलने का संकल्प पैदा किया। हिन्दी के जीवित कवियों में कुँवर नारायण सबसे बड़े हैं। जब मैं छटपटाता हूँ तो इनकी कविताएँ पढ़कर बल मिलता है। -राम गोपाल बजाज
I did like the poems. Your way of saying things in undertones is remarkably communicative. And there is a rare suavity in this way of communication. -Sombhu Mitra
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