पानी - युवा कहानीकार मनोज कुमार पांडेय का यह दूसरा कहानी संग्रह है। पहले कहानी-संग्रह 'शहतूत' की 'शहतूत' तथा 'सोने का सुअर' जैसी कहानियाँ पर्याप्त चर्चित हुई थीं। इस संग्रह की कहानियाँ निश्चित रूप से पहले कहानी-संग्रह से आगे की कहानियाँ हैं। इससे पता चलता है कि मनोज एक निश्चित दिशा में निरन्तर प्रगति कर रहे हैं। इस संग्रह में मनोज वैयक्तिकता से सामूहिकता की ओर बढ़े हैं। शीर्षक कहानी 'पानी' को कहानीकार बड़े कौशल से महज रिपोर्ताज़ होने से बचाकर एक गाँव पर आयी आपदा का मार्मिक विश्लेषण करता है। मनोज की अनेक कहानियों में यथार्थ और फ़ैंटेसी का संश्लिष्ट सम्मिश्रण मिलता है। 'जींस', 'पुरोहित जिसने मछलियाँ पालीं' तथा 'बूढ़ा जो शायद कभी था ही नहीं' ऐसी ही कहानियाँ हैं। 'और हँसो लड़की' कहानी आज की एक क्रूर तथा नृशंस सामाजिक वास्तविकता को दहलाने वाले ढंग से व्यक्त करती है। जिसे आज 'ऑनर किलिंग' कहा जा रहा है और जिसके सम्बन्ध में आज सत्ता और व्यवस्था मौन है। स्वयं सत्ता के विनाशकारी प्रपंच को बड़े शिल्पगत कौशल के साथ आत्मालाप के रूप में 'हँसी' कहानी दर्शाती है। मनोज की इन कहानियों में विषयवस्तु की दृष्टि से भी विविधता है और उसी के अनुरूप भाषा भी बदलती गयी है। इन कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता है इनकी रोचकता।
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