मोहन राकेश संचयन -
मोहन राकेश नयी कहानी के दौर के प्रतिष्ठित कथाकार, उपन्यासकार, चिन्तक और नाटककार हैं। राकेश की उस पूरे दौर के विचार और संवेदना परिदृश्य के निर्माण में अहम भूमिका थी। राकेश बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी, ध्वनि नाटक, बीज नाटक और रंगमंच—इन सभी क्षेत्रों में मोहन राकेश का नाम सर्वोपरि है। कहानीकार, नाटककार और उपन्यासकार—तीनों रूपों में वे सृजन के नये प्रस्थान निर्मित करते हैं।
इस संचयन में हमने मोहन राकेश के दो उपन्यासों 'अँधेरे बन्द कमरे' और 'न आने वाला कल' का संक्षिप्त पाठ प्रस्तुत किया है। 'अँधेरे बन्द कमरे' हिन्दी के उन गिने-चुने उपन्यासों में है जो नागर जीवन की त्रासदियों को प्रस्तुत करता है। 'न आने वाला कल' तेज़ी से बदलते आधुनिक जीवन तथा व्यक्ति और उनकी प्रतिक्रियाओं पर बहुत प्रसिद्ध उपन्यास है।
राकेश ने भले ही कई कालजयी कहानियों तथा उपन्यासों का सृजन किया हो, लेकिन वे मूलतः एक नाटककार ही थे। 'आषाढ़ का एक दिन' उनका सर्वाधिक चर्चित नाटक रहा है। इस संचयन में इसे अविकल रूप से शामिल किया जा रहा है। साथ ही साथ 'अण्डे के छिलके' तथा अन्य कतिपय एकांकियों को भी इस संचयन में स्थान दिया गया है।
हमने कोशिश की है कि तब के दौर में राकेश ने यत्र-तत्र जो विचार प्रकट किये, यहाँ उनकी भी शमूलियत हो। इस क्रम में हमने राकेश के ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण कुछ निबन्धों का भी संचयन किया है। इस संचयन की एक उपलब्धि के तौर पर मोहन राकेश की डायरी के कुछ पन्नों को लिया जा सकता है। आशा है हिन्दी साहित्य और मोहन राकेश के पाठक इन रचनाओं के चयन को पसन्द करेंगे।
— रवीन्द्र कालिया
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