मोहाली से मेलबर्न - जीवन के चित्र को विविध रंगों से भरने के लिए उतने ही अनुभवों से गुज़रने की ज़रूरत होती है। वे अनुभव व्यक्ति व्यक्ति से मिलते हैं, देश-विदेश की यात्राओं से मिलते हैं। दृश्य पर पकड़ जितनी गहरी होती है, रंगों की विविधता उस चित्र को उतनी ही ख़ूबसूरती प्रदान करती है। प्रो. मानव की नज़र में वह पकड़ है, इसलिए उनके लेखन में साधारण-सी घटना भी असाधारण बन जाती है। मोहाली से मेलबर्न का यात्रा वृत्तान्त इसका साक्षी है। एक उदाहरण देखिए— "थकान कुछ कम हुई है। पर संघर्ष कहीं अन्दर है। रिश्तों के रहस्य समझने की कोशिश में हूँ। अपनत्व-सा सबकुछ है, पर नहीं भी है कहीं। जहाँ नहीं है, उसी के लिए चिन्तित हूँ। व्यथा की डोर गहराती क्यों जा रही है? सोते-सोते बारह बजने को हैं। सर्दी की काटती रात के बारह। कपड़े हैं, कला है और मन! मन मेलबर्न की रोशनी-सा फैल रहा है।" इस तरह छोटी-छोटी घटनाओं के ताने-बाने ने यात्रा-वृत्तान्त को रोचक, प्रेरक और रिश्तों की सोच को पारदर्शी बना दिया है, जिसमें सुख भी है तो चुभन भी है। सुगन्ध भी है तो बदबू भी है। और इन प्रिय-अप्रिय प्रसंगों/अनुभवों में से गुज़रकर ही तो हम जीवन-यात्रा को एक निश्चित अर्थ दे पाते हैं। प्रो. मानव की लेखनी में उसी सार्थकता के दर्शन आपको हर पृष्ठ पर मिलेंगे। लगेगा जैसे आप उनके साथ यात्रा पर हैं, यात्रा का आनन्द ले रहे हैं। उनकी क़लम की यही ख़ूबी है। यात्रा करें, आप यात्रा के बीच गुज़रनेवाले हर लम्हे को पूरी समग्रता से जियें, यही इसकी प्रेरणा है। —आचार्य रूपचन्द
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