कोई मेरा अपना - 'कोई मेरा अपना' कथाकार सुषमा जगमोहन का पहला कहानी-संग्रह है। पत्रिकाओं में प्रकाशित कहानियों के बाद उनके उपन्यास 'ज़िन्दगी ई-मेल' ने उन्हें एक संवेदनशील रचनाकार के रूप में प्रतिष्ठित किया। जीवन के अनेक पक्ष सुषमा जगमोहन को 'देश' और 'काल' का अतिक्रमण करने के लिए प्रेरित करते हैं। यही कारण है कि वे जीवन की प्रतिलिपि निर्मित करने के स्थान पर समय से आगे निकलकर कल्पनाओं के आकाश का विस्तार प्रारूपित करती हैं। इस प्रक्रिया से उनको कहानियों को पंख मिल जाते हैं और कथा-कैनवास बड़ा हो जाता है। 'कोई मेरा अपना' की सभी कहानियाँ उक्त विशेषताओं को रेखांकित करती हैं। 'पानी @ 2015' जीवन के पर्याय जल के भविष्य पर केन्द्रित है। 'कोई मेरा अपना' लगभग एक शताब्दी बाद के जीवन की यान्त्रिकता एवं उससे उत्पन्न यन्त्रणा को यथार्थ व कल्पना के सहमेल से मूर्तिमान करती है। इसी प्रकार 'शहादत', 'मोक्ष', 'ज़िन्दगी की स्लेट पर ए बी सी', 'उसूलवाली', 'वो तीन घंटे' और 'सौदा' आदि कहानियाँ भिन्न-भिन्न पृष्ठभूमियों से सूत्र संकलित करते हुए समय के एक प्रामाणिक चेहरे की रचना करती हैं। आधुनिक जीवन की विशेषताएँ और विसंगतियाँ सुषमा जगमोहन की इन कहानियों में सशक्त ढंग से प्रकट हुई हैं। उनकी भाषा और शैली पाठक को साथ लेकर चलती है। यह कहानी संग्रह उपयोग, उत्पादन और ऊब के कुचक्र में फँसती जा रही आधुनिकता के सम्मुख कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्न खड़े करते हुए भविष्य के प्रति हमें सचेत करता है।
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