Kandhe Par Baitha Tha Shap

Meera Kant Author
Hardbound
Hindi
9788126318957
2nd
2010
164
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कन्धे पर बैठा था शाप - मीरा कांत की नाट्य त्रयी 'कन्धे पर बैठा था शाप' उन छूटे हुए, अव्यक्त पात्रों एवं स्थितियों की अभिव्यक्ति है जो या तो साहित्यिक मुख्यधारा का अंग न बन सकीं या फिर उसकी सरहद पर ही रहीं। इस नाट्य त्रयी का पहला नाटक है 'कन्धे पर बैठा था शाप' जो कालिदास के अन्तिम दिनों, अन्तिम उच्चरित शब्दों, अन्तिम पद्य-रचना, प्रायः विस्मृत मित्र कवि कुमारदास और उस मित्र के प्रेम-प्रसंग के माध्यम से स्त्री-विमर्श का एक नया वातायन खोलता है। स्त्री-विमर्श की एक अन्य परत है विद्योत्तमा, जो एक बार दण्डित की गयी विदुषी होने के कारण और दूसरी बार तिरस्कृत हुई सम्मान के नाम पर। दूसरा नाटक 'मेघ-प्रश्न' कालिदास विरचित 'मेघदूतम्' के कथा-तत्त्व के अन्तिम सिरे को कल्पना की पोरों से उठाकर एक भिन्न व सर्वथा नयी वीथि की ओर बढ़ाने का सुन्दर प्रयास है। यह नाटक सन्देश काव्य के सर्वाधिक सशक्त कारक मेघ की निजी व्यथा का यक्ष प्रश्न सामने रखता है। तीसरा नाटक 'काली बर्फ़' विस्थापन और डायस्पोरा के दर्द से बुने कश्मीर के समसामयिक यथार्थ को स्वर देता है। यह उस त्रासद कथा की एक बूँद मात्र है जो आज व्यथा बनकर बह रही है और उसी व्यथा-सरोवर में कहीं-कहीं खिल रहे हैं स्मृति से लेकर आनेवाले कल तक फैले सपने—कमल-दल सपनों के।

मीरा कान्त (Meera Kant)

मीरा कान्त

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