Jhumra Bibi Ka Mela

Hardbound
Hindi
9788126313624
3rd
2016
112
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झूमरा बीबी का मेला - बांग्ला-साहित्य में रवीन्द्रनाथ के बाद की पीढ़ी के कथाकारों में रमापद चौधुरी अन्यतम हैं। विषय वस्तु की विविधता, तदनुरूप वाक्य-विन्यास, प्रवहमान भाषा, जीवन-मूल्यों के प्रति श्रद्धा और विश्वास का भाव उनकी कहानियों में ऐसी मार्मिकता उत्पन्न करते हैं और ऐसे वस्तुनिष्ठ यथार्थ की ओर ले जाते हैं, जहाँ पाठक अपने आन्तरिक और बाह्य जगत के घमासान, राग-विराग, जय-पराजय और संघर्षों की प्रतिध्वनियाँ सुन पाता है। ये कहानियाँ जीवनानुभवों के ऐसे बीहड़ में ले चलती हैं; जहाँ समाज के निर्मम यथार्थ परत-दर-परत मनुष्य जीवन की नियति का न केवल साक्ष्य बन जाते हैं, बल्कि विडम्बनाओं का आख्यान बन कर कई बड़े प्रश्नों को जन्म देते हैं और कैफ़ियत माँगते हैं। रमापद जी का ज़्यादातर जीवन बंगाल और बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों में बीता, इसलिए आश्चर्य नहीं कि वहाँ का लोकजीवन अपनी जीवन्तता तथा विविध रंगों और स्पन्दनों के साथ उनकी कहानियों में अभिव्यक्त हुआ है। उनके अनुभव-संसार का वैचित्र्य अक्सर हमें विस्मित कर देता है। पिछले लगभग 50 वर्षों से रचनाकर्म में संलग्न रमापद चौधुरी बांग्ला साहित्य के किंवदन्ती पुरुष बन गये हैं। उनकी रचनात्मक बेचैनी ने आज भी उन्हें साहित्य और समाज में सक्रिय बना रखा है। इस संग्रह में रमापद जी की दस प्रतिनिधि कहानियाँ हैं। इन्हें पढ़कर हिन्दी के पाठक भी उस वैचारिक उत्तेजना तथा जीवन के बहुरंगे यथार्थ को उसी मार्मिकता के साथ अनुभव कर सकेंगे, जिसे बांग्ला के पाठक पिछले पाँच दशकों से करते आ रहे हैं।

रमापद चौधरी (Ramapad Chaudhuri )

रमापद चौधुरी - जन्म: 28 दिसम्बर, 1922 खड़गपुर (पश्चिम बंगाल)। शिक्षा: एम.ए. (अंग्रेज़ी)। अब तक कुल 140 कहानियाँ और 45 उपन्यास प्रकाशित। प्रमुख हैं—तीनतारा, स्वर्णमारीच, अभिसार रंगनटी, दरबारी, पियापसन्द,

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