जीवन वृत्त, व्यास ऋचाएँ - मैं बिखरी हुई थी—अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न शब्दावलियाँ मारती रहती थीं टक्कर सिर में—दर्द, मन बेचैन हिन्दी ज़रूरत बन गयी, कविताएँ सुकून यह किताब मेरी कोशिश है बुहारने की अपने तिनके-तिनके फैले जीवन को छिपकली की पूँछ और घोंघे के श्लेष्मा की यान्त्रिकी ने सदा आकर्षित किया, उन्हें समेटा 'आतंकवाद' और 'प्रोपेगेंडा' में जीवन की गूढ़ता पर मनन समीकरणों से उभर आये 'जो जोड़ा वह जाता रहा, जो बाँटा बस गया मुझमें' सौंधी 'यारियाँ' हैं, वात्सल्य है, प्रेम है कड़ी चेतावनी भी है—'तुम्हें तुमसे ही डराने के लिए तुम्हारे वीर्य में जाकर बस जाऊँगी मैं भूत बनकर आऊँगी' 'बिग डेटा' अनावरण है सामान्य जीवन में टेक्नॉलाजी के अदृश्य और विस्फोटक हस्तक्षेप का रतन्त्रता की पीड़ा सालती है 'वेल्स', 'ब्राउन पॉपी' और 'भाषा, मेरी भाषा'—में 'गोरी सरकार के काले कपट ने उन लाल चमकीले फूलों को मटमैला बना दिया', 'और वो बूढ़ी रानी—भेड़, वो क्यों घूरती रहती है? ' अस्पष्टता ढह गयी रिश्तों से—शनैः शनैः दबे आक्रोश फटे, वह निकले मतभेद नहीं अब विषयों में एकीकार हैं मन हल्का है
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