Itwaar Nahin

Kunal Singh Author
Hardbound
Hindi
9789326351157
2nd
2014
140
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इतवार नहीं - 'सनातन बाबू का दाम्पत्य', 'रोमियो जूलियट और अँधेरा' व 'आदिग्राम उपाख्यान' के बाद कुणाल सिंह की यह चौथी पुस्तक है। नयी सदी में उभरे, नयी संवेदना व नव-यथार्थ को, बज़रिये कथा के, उकेरने वाले कथाकारों में वे गिने-चुने युवा लेखकों में हैं जिनकी चौथी पुस्तक पाठकों के हाथ में है। सुखद यह है कि संग्रह में संगृहीत कहानियों से गुज़रते हुए आपको उसी सान्द्रता व घनत्व का अहसास होगा जो अब तक कुणाल की लेखकी का पर्याय-सा बन चुका है। यह उनकी पहले की समस्त पुस्तकों में स्वतःसिद्ध है कि कुणाल सिंह की क़िस्सागोई और भाषिक संरचना अनूठी है, यहाँ यह दुहराने की ज़रूरत नहीं; हाँ लेकिन इन कहानियों से गुज़रते हुए यह ज़रूर महसूस होता है, कि 'सनातन बाबू का दाम्पत्य' का लेखक अब अपनी प्रौढ़ावस्था को प्राप्त कर चुका है। 'डूब', 'झूठ तथा अन्य कहानियाँ', 'दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएँगे' जैसी कहानियाँ पाठक के अन्तस् को झरझोर देती हैं। ‘प्रेमकथा में मोज़े की भूमिका...' व 'इतवार नहीं' जैसी कहानियाँ शिल्प के स्तर पर तो नयी ज़मीन तोड़ती ही हैं, व्यापक सामाजिक सरोकारों को भी नयी आँख से देखती हैं। एक नितान्त स्वागत योग्य कथा-संग्रह।

कुणाल सिंह (Kunal Singh)

कुणाल सिंह - 22 फ़रवरी, 1980 को कोलकाता के समीपवर्ती एक गाँव में जन्म। प्रेसिडेंसी कॉलेज, कोलकाता से हिन्दी साहित्य में एम.ए. (प्रथम श्रेणी में प्रथम) के बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ल

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