Gulmehnadi Ki Jhaariyaan

Hardbound
Hindi
9788126318858
3rd
2010
152
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गुलमेंहदी की झाड़ियाँ - 'गुलमेंहदी की झाड़ियाँ' युवा कथाकार तरुण भटनागर का पहला कहानी-संग्रह इसलिए भी पाठकों का ध्यान आकर्षित करेगा क्योंकि तरुण की कहानियों में कथ्य और तथ्य का एक ऐसा युवा ताज़ापन है जो परिपक्व तो है ही, परिपूर्ण भी है। तरुण दो सदी के अवान्तर में आयी तमाम समस्याओं, चुनौतियों और उनसे सतत संघर्षों को अपने रचनात्मक सरोकारों में इस विशिष्ट अन्दाज़ में शामिल करते हैं कि पाठक यथार्थ के ज्ञात-अज्ञात अवकाश में स्वयं को पाता है—कभी सहमा, कभी प्रेमिल, कभी जूझता, कभी हास्यास्पद, कभी पीड़ित... किन्तु अन्ततः जीवित संगति-असंगति के विडम्बनात्मक वर्तमान का सन्धान ही तरुण भटनागर का रचनात्मक अवदान है। सँपेरों की दन्तकथाओं, मिथकों के पारम्परिक स्पेस और छाया-प्रतिछाया के अन्यतम जादू में कथाकार ऐसा यथार्थ उपस्थित करता है जो अफ़गान शरणार्थियों की पीड़ा और जीने की क़वायद में जूझते सँपेरों की जीवटता से एक साथ जुड़ता है भाषा और शिल्प के स्तर पर ही नहीं, बल्कि सदी के संक्रमणकाल में उभरे ज़रूरी सवालों से भी पाठकों का साक्षात् करवायेगा यह कहानी-संग्रह 'गुलमेंहदी की झाड़ियाँ'।

तरुण भटनागर (Tarun Bhatnagar)

तरुण भटनागर - इकतालीस वर्षीय तरुण मूलतः छत्तीसगढ़ के रहनेवाले हैं। रायपुर में जनमे और सुदूर आदिवासी अंचल बस्तर के क़स्बे में बस गये। पहले गणित और इतिहास से स्नातकोत्तर। लगभग सात वर्ष आदिवासी

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