इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की चुनौतियाँ -
स्वाधीनता से पहले ही भारत के द्वार पर विज्ञान ने दस्तक देना शुरू कर दिया था। सबसे बड़ी क्रान्ति तो बिजली से हुई थी, जिसे जन-साधारण तक पहुँचते-पहुँचते कई दशक लग गये। भारत में सबसे पहले हवेलियों में ही बिजली के हंडे जगमगाये थे। विदेश में निर्मित कारों ने भी सबसे पहले सामन्तों की हवेली में ही प्रवेश किया था। बग्घियों और ताँगों की जगह कारों ने घेर ली थी। जनसंख्या का विस्फोट हुआ तो ताँगों का स्थान रिक्शा और ऑटोरिक्शा ने ले लिया। भारत में रेडियो का प्रवेश भी एक चमत्कार की तरह हुआ था। एक ज़माना था जब लोग मीलों चलकर रेडियो सुनने जाते थे। देखते-देखते रेडियो ने जन-साधारण तक अपनी पैठ मज़बूत कर ली। रेडियो में प्रसारित समाचार पर जैसे प्रामाणिकता की मुहर लग जाती थी। फिर आया जादू का पिटारा, टेलीविज़न। पश्चिम में इसे 'इडियट बॉक्स' के रूप में पुकारा जाता है। इसके बाद आया मोबाइल, रेडियो ने मोबाइल में भी परकाया प्रवेश कर लिया। कल आप मोबाइल पर टेलीविज़न भी देख पायेंगे। टेलीविज़न की लीला न्यारी है। भारत में इस सुविधा का विकास अत्यन्त चरणबद्ध रूप से हुआ। माँग को देखते हुए विकास की गति अति तीव्र रही। जब भारत में टेलीविज़न आया तो लोगों की उत्सुकता इस हद तक पहुँच चुकी थी कि वे प्रसारण के चार घंटे टेलीविज़न सेट के सामने बैठ कर बिताया करते थे, चाहे 'कृषि-दर्शन' जैसा कार्यक्रम ही क्यों न आ रहा हो। फिर आया ख़बरिया चैनलों का दौर। चौबीस घंटे आप समाचार देख सकते थे। लोग पहले टेलीविज़न पर समाचार देखते, सुबह अख़बारों में समाचार पढ़ते। यह समझना कठिन लग रहा था कि लोग दिन-रात समाचार के पीछे क्यों पागल रहते हैं। वास्तव में समाचार कोई जड़ वस्तु नहीं होते, वे लगातार विकसित होते हैं। उनमें भी यह जानने की उत्सुकता बनी रहती है कि आगे क्या हुआ हत्या हो गयी तो प्रश्न उठता है, हत्या किसने की, क्यों की, हत्यारा कौन था, हत्या के प्रति शासन का क्या रवैया है, उसकी परिणति क्या हुई? टेलीविज़न के विकास में 'स्टिंग ऑपरेशन' ने भी नये प्राण फूँक दिये। आप स्क्रीन पर देख रहे हैं कि नेताजी रंगे हाथों रिश्वत ले रहे हैं। हर चैनल पर देख रहे हैं, हर चैनल के पास अपनी स्टोरी है। इन सब कार्यक्रमों ने टेलीविज़न की प्रासंगिकता अब तक कायम रखी है।
इस पुस्तक में सीधे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े लोगों का 'आँखों देखा सच' प्रस्तुत है। मीडिया की 'इनसाइड स्टोरी' सतह पर बहुत कम आ पाती है, इस पुस्तक में यह स्टोरी अपने 'नौ रसों' के साथ मौजूद है। इसके अलावा देश के नामचीन मीडिया विशेषज्ञों के आलेख इस पुस्तक को सम्पूर्ण बनाते हैं। एक प्रायः अछूते विषय पर एक सवर्था स्वागतयोग्य पुस्तक।
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