अर्थ ओझल - कहानी-लेखन की अपनी यात्रा का एक संतोष तो मुझे मिला है। जीवन के विविध रंग मिल जायेंगे यहाँ। बच्चों, नौजवानों, बूढ़ों की कहानियाँ। तरह-तरह के सम्बन्धों की कहानियाँ, कैसे-कैसे दुःख दर्द की कहानियाँ। कहा जाता है कि मेरे यहाँ नारी की कहानियाँ ज़्यादा है, तो नारी तो पृथ्वी है। सब उम्र की नारियाँ मिलेगी। इसी तरह घृणा, आक्रोश, ईर्ष्या-द्वेष से लगाकर प्रेम (उफनता हुआ प्रेम), निष्काम प्रेम, उदात्तता से होते हुए आत्मिकता और आध्यात्मिकता तक गाँव, क़स्बे, महानगर और विदेश (पैंतालीस अंश का कोण, ख़ाक इतिहास, शापग्रस्त जैसी), यहाँ तक कि परलोक से सम्बन्धित कहानियाँ है। यह भी संतोष मेरा है कि कहानियाँ पठनीय हैं... उनमें रस है जो पढ़ा ले जाता है उन्हें। कहानियों का स्तर क़ाफ़ी कुछ उनका विषय तय करता है... और वैसे विषय हर बार हाथ नहीं आते। यह भी हो सकता है कि स्तर को लेकर मेरा यह भ्रम हो, दरअसल यह मुग्धता है किसी विशेष अनुभूति या विशेष श्रेणी की अनुभूति के व्यक्त होने पर महसूस की गयी मुग्धता, जो फिर हमें छोड़ती ही नहीं। 'मायकल लोबो', 'पगला बाबा' जैसी अनुभूति... उनकी आत्मिकता के लिए मुग्धता। लेकिन इन कहानियों में भी आत्मिकता से अधिक उसके नीचे दबी मानवीयता मेरे आकर्षण का केन्द्र रही है। कहानी में सबसे मुख्य चीज़ भावना को मानता हूँ, भावुकता से दूर रहते हुए भी कहानी भावनात्मक रूप से सघन हो। मुश्किल यही है कि इस मुख्य तत्व को अकसर लेखक के अनजाने ही, उसका ही कोई मोह-कथा रस भाषा का रचाव, आंचलिकता, नित-नयी शैली, आधुनिकता... किसी के लिए भी मोह सोख डालता है। तब कहानी सिर्फ़ मस्तिष्क से रची हुई लगती है, उसमें हिलाने की शक्ति नहीं रहती, अकसर तो वह सहज पठनीय भी नहीं रह जाती। एक भावना का तार ही है जो जब लेखक के हृदय में बजता है तो पाठक के मन में भी स्पन्दन पैदा करता है। कहानी का ताना-बाना क्या और कैसे होना है, उसे कहाँ कसना और कहाँ ढीला छोड़ना है—यह सब सिर्फ़ वही मुख्य लक्ष्य सामने रखकर तय करता हूँ, कैसे जीवन का वह टुकड़ा जिसे मैंने उठाया है, वह भावना से स्पन्दित हो सके। प्रस्तुत हैं इसी लेखक की कथा-यात्रा की झलकियाँ।
Log In To Add/edit Rating
You Have To Buy The Product To Give A Review