Chaubare Par Ekaalaap

Anup Sethi Author
Hardbound
Hindi
9788193655580
1st
2018
124
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चौबारे पर एकालाप - अपने इस दूसरे कविता-संग्रह में अनूप सेठी की ये कविताएँ एक विडम्बनात्मक समय-बोध के साथ जीने के अहसास को और सघन बनाती हैं। औसत का सन्दर्भ, नये समय के नये सम्बन्ध, खुरदुरापन, स्थितियों के बेढब ढाँचे, वजूद की अजीबोग़रीब शर्तें, तेज़ी से बदलता परिवेश जिनमें जीवन जीने की बुनियादी लय ही गड़बड़ाई हुई है। अपने इस वर्तमान को कवि देखता है, रचता है और कई बार उसका यह विडम्बना बोध सिनिकल होने की हदों को भी छूने लगता है—'फिर भीख माँगी/ गिड़गिड़ाये/ खीसें निपोरीं/ अनचाहा बोला/ मनमाना सुना/ चाहा पर अनसुना नहीं कर पाये'। एक तर्कहीन समय और बहुत सारे छद्म के बीच जीते हुए इन कविताओं का अन्दाज़ किसी हद तक एक अगम्भीर मुद्रा को अपना औज़ार बनाता है। जीवन जिसमें सपने, स्मृतियाँ, उदासी, खीझ, तिक्तता और लाचारी एक-दूसरे में घुल-मिल गये हैं। इन कविताओं में बहुत सारे विषय और परिस्थितियाँ हैं, मूर्त और अमूर्त स्थितियों का मिश्रण है, परिदृश्य की एक स्थानिकता है, एक धीमी लय, एक तलाश और अस्त-व्यस्तता है, जगमगाहट के पीछे से झाँकते अँधेरे कोने-कुचाले हैं, विद्रूपताएँ हैं और स्थिति विपर्यय का अहसास है। सत्ता के नुमाइन्दे जिस शक्ति-तन्त्र को एक आम आदमी के जीवन में रचते हैं, उन नुमाइन्दों की आवाज़ को जानना है, 'जिसमें न कोई सन्देह, न भय/ न भर्राई न कर्कश हुई कभी/ हमेशा सम पर थिर'। इस शक्ति-तन्त्र में घिरे हुए सामान्य जन की एक गृहस्थी है, जहाँ घर-कुनबे की मार्मिकता है, जहाँ वह ख़ुद के पास ख़ुद होने के अहसास को पाना चाहता है। एक जगह कवि लिखता है— 'बच रहे किनारे पर/ जैसे बच रही पृथ्वी पर/ चल रहे थे चींटियों की तरह हम तुम/ जैसे सदियों से चलते चले आते हुए/ अगल-बगल जाना वह कुछ तो था'। अपनी किसी अस्मिता को पाने की यह आकांक्षा, कुछ बचा लेने की तड़प, मनोभावों का विस्तार, जहाँ अपनी दुनिया में थोड़ी देर के लिए भी लौटना कवि को 'सड़क पर झूमते हुए हाथियों की तरह' प्रतीत होता है, किसी मार्मिक व्यंजना को रचता है। कवि के पास एक औसत नागरिक जीवन का रोज़नामचा है, जन संकुलता है, यान्त्रिक जीवन शैली में फँसे रहने की बेचैनी, बेदर्द हवाले और नाटकीय स्थितियाँ हैं, कुछ बीतते जाने के अहसास हैं और इसी के साथ करुणा में भीगे कुछ प्रच्छन्न सन्दर्भ हैं, कुछ अप्रत्याशित उद्घाटन हैं— वह सब जो आज हमारे लिए एक कविता लिखने की प्रासंगिकता को रचता है। सजगता, एकाग्रता और मर्म बोध के साथ इन कविताओं से उभरते ये बहुत सारे निहितार्थ इस संग्रह की कविताओं को कवि की काव्य-यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव साबित करते प्रतीत होते हैं।—विजय कुमार

अनूप सेठी (Anup Sethi)

अनूप सेठी - जन्म: 20 जून, 1958। शिक्षा: बी.ए. आनर्स, एम. ए. (हिन्दी) और एम. फिल. (हिन्दी), एम. फिल. के लिए 'हिन्दी में विसंगतिमूलक नाटक' विषय पर लघु शोधप्रबन्ध। लेखन: कविता संग्रह: जगत में मेला (आधार प्रकाशन), 2002

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