अन्तिम बयान - मंजुल भगत ने गत-अनागत के कालगत अदृश्य कुहासों में भटकने के बजाय अपने सामने जीती-जागती, तीव्रता और उत्कटता से ज़िन्दगी को जीती, भोगती, लहू-लुहान होती दुनिया को अपनी कहानियों का विषय बनाया। वे काल में नहीं स्पेस में सन्तरण करते पात्रों की बहुआयामी कथा कहती हैं—पूरे मानवीय लगाव, सरोकार और विश्वसनीयता के साथ। इन पात्रों में भी स्वभावतः उनकी नज़र नारी-जीवन से सम्बद्ध पक्षों और प्रश्नों पर ज़्यादा टिकती है। स्त्री पात्रों का भरा-पूरा संसार है मंजुल की कहानियों में। विकल्पों को तलाश करती नारियाँ, निर्णय लेती नारियाँ, समस्याओं के स्थायी-अस्थायी समाधान खोजती नारियाँ और कभी-कभी 'अस्मि' यानी 'मैं हूँ' के अहसास में अपनी सार्थकता तलाश कर आश्वस्त होती नारियाँ...। मंजुल की कहानियों की बहुत बड़ी शक्ति, कैमरे के लैंस की तरह अपने विषय को फ़ोकस में बनाये रखने की सामर्थ्य है। जहाँ कहानी की सम्भावना न दिखाई पड़ती हो, वहाँ भी उसमें कहानीपन पैदा कर ले जाने का रचनात्मक कौशल उनके रचना-संसार को बड़ा परिचित, जीवन्त और विश्वसनीय बनाता है।—डॉ. निर्मला जैन
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