Teesari Taali

Hardbound
Hindi
9789350005026
2nd
2018
195
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यह उभयलिंगी सामाजिक दुनिया के बीच और बरक्स हिजड़ों, लौंडों, लौंडेबाजों, लेस्बियनों और विकृत प्रकृति की ऐसी दुनिया है जो हर शहर में मौजूद है और समाज के हाशिए पर जिन्दगी जीती रहती है। अलीगढ़ से लेकर आरा, बलिया, छपरा, देवरिया यानी 'एबीसीडी' तक, दिल्ली से लेकर पूरे भारत में फैली यह दुनिया समान्तर जीवन जीती है। प्रदीप सौरभ ने इस दुनिया के उस तहखाने में झाँका है, जिसका अस्तित्व सब 'मानते' तो हैं लेकिन 'जानते' नहीं । समकालीन 'बहुसांस्कृतिक' दौर के 'गे', 'लेस्बियन', 'ट्रांसजेंडर' अप्राकृत- यौनात्मक जीवन शैलियों के सीमित सांस्कृतिक स्वीकार में भी यह दुनिया अप्रिय, अकाम्य, अवांछित और वर्जित दुनिया है । यहाँ जितने चरित्र आते हैं वे सब नपुंसकत्व या परलिंगी या अप्राकृत यौन वाले ही परिवार परित्यक्त, समाज बहिष्कृत - दंडित ये 'जन' भी किसी तरह जीते हैं। असामान्य लिंगी होने के साथ ही समाज के हाशियों पर धकेल दिये गये, इनकी सबसे बड़ी समस्या आजीविका है जो इन्हें अन्ततः इनके समुदायों में ले जाती है। इनका वर्जित लिंगी होने का अकेलापन 'एक्स्ट्रा' है और वही इनकी जिन्दगी का निर्णायक तत्त्व है। अकेले-अकेले ये किन्नर आर्थिक रूप से भी हाशिये पर डाल दिये जाते हैं । कल्चरल तरीके से 'फिक्स' दिए जाते हैं । यह जीवनशैली की लिंगीयता है जिसमें स्त्री लिंगी - पुलिंगी मुख्यधाराएँ हैं जो इनको दबा देती हैं। नपुंसकलिंगी कहाँ कैसे जिएँगे? समाज का सहज स्वीकृत हिस्सा कब बनेंगे ?

प्रदीप सौरभ (Pradeep Saurabh)

प्रदीप सौरभ संपर्क : 334, वार्तालोक, वसुन्धरा, गाजियाबाद (उ. प्र.)

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