Tumhara Parsai

Hardbound
Hindi
9788181430984
2nd
2022
334
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"सत्य शुभ हो, अशुभ हो, काला हो, सफेद हो-साहित्य उसी से बनता है - ' परसाई जी ने 'देश के लिए दीवाने आये' शीर्षक अपने प्रसिद्ध निबंध में लिखा था। अपनी इस पुस्तक में मैंने हरिशंकर परसाई के जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व के शुभ पक्षों पर, अशुभ पक्षों पर, काले और सफेद पक्षों पर वही लिखा है जो सत्य है और मेरा जाना हुआ है । यह साहित्य है या नहीं, पता नहीं । साहित्य की किस स्वीकृत विधा में इसकी गणना होगी-इसकी भी चिन्ता मैंने नहीं की है। इसमें जो कुछ मैंने लिखा है यदि वह सब सत्य है तो साहित्य की परिधि बढ़ानी पड़ेगी । यह पुस्तक परसाई-साहित्य के पाठकों के लिए है; कक्षाओं के लिए, पाठ्यक्रमों के लिए, समीक्षकों के लिए या पुस्तकालय की अलमारियों के लिए नहीं । परसाई जी को मैं पिछले 50-52 वर्षों से जानता रहा हूं; पाठक, पड़ोसी, मित्र और अंतरंग के रूप में। मेरा उनसे बराबर पत्र-व्यवहार होता था, घंटों बातचीत होती थी, उनके बहुत से मित्र मेरे भी मित्र थे- उनके परिवार के सभी सदस्यों से मेरी आत्मीयता थी। जबलपुर और सागर के उनके और मेरे दिनों में हमने बहुत सा समय साथ बिताया है । परसाई जी पर जितना लिखा गया है-उतना परसाई जी के प्रभाव, पठनीयता और महत्ता को देखते हुए अपर्याप्त है। उन पर हिन्दी में ऐसी कोई पुस्तक नहीं है जैसी अंग्रेजी में 'पापा हेमिंग्वे' है या 'जी. बी. एस. ' है या 'इब्सन- द नार्वेजियन' है ।

कान्तिकुमार जैन (Kanti Kumar Jain )

कान्तिकुमार जैन  नौ सितम्बर, 1932 को सागर (म.प्र.) के देवरीकलां में जन्मे कान्तिकुमार जैन ने कोरिया (छत्तीसगढ़) के बैकुंठपुर से 1948 में मैट्रिक करने के बाद उच्च शिक्षा सागर विश्वविद्यालय में प्राप

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