बुझा जो रौज़ने-जिंदाँ तो दिल ये समझा है कि तेरी माँग सितारों से भर गई होगी चमक उठे हैं सलासल तो हमने जाना है कि अब सहर तेरे रुख पर बिखर गई होगी
ग़रज तसव्वुरे-शामो सहर में जीते हैं गिरफ़्ते-सायए-दीवारो-दर में जीते हैं
यूँही हमेशा उलझती रही है जुल्म से ख़ल्क न उनकी रस्म नई है, न अपनी रीत नई यूँही हमेशा खिलाए हैं हमने आग में फूल न उनकी हार नई है न अपनी जीत नई इसी सबब से फ़लक का गिला नहीं करते तेरे फ़िराक़ में हम दिल बुरा नहीं करते
गर आज तुझ से जुदा हैं तो कल बहम होंगे ये रात भर की जुदाई तो कोई बात नहीं गर आज औज पे है तालए-रक़ीब तो क्या ये चार दिन की खुदाई तो कोई बात नहीं
जो तुझ से अह्दे-वफ़ा उस्तवार करते हैं। इलाजे-गर्दिशे-लैलो-नेहार करते हैं।
Log In To Add/edit Rating
You Have To Buy The Product To Give A Review