मीडिया की स्वतन्त्रता का क्या अर्थ है, उसका जनतन्त्र से सम्बन्ध कैसे मज़बूत हो, बिग मीडिया की राजनीति क्या है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का वर्तमान स्वरूप किस तरह मानवीय स्वतन्त्रता और रचनात्मकता के लिए ख़तरा पैदा कर रहा है, विदेशी पूँजी बाज़ार और मीडिया का आपसी सम्बन्ध कैसा है, भूमण्डलीय सांस्कृतिक आक्रमण के हथियार के रूप में उसके तीव्र रूपान्तरण को कैसे समझा जाये, हम 21वीं सदी को कैसे इस आक्रमण के जवाब की सदी बनायें, 'समकालीन सृजन' द्वारा प्रकाशित 'आज का मीडिया' के केन्द्र में ऐसे ही कुछ ज्वलन्त प्रश्न हैं। यह मीडिया-समीक्षा का एक समग्र भारतीय परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करते हुए मीडिया द्वारा अन्ध-पश्चिमीकरण, कूपमण्डूकता और बाज़ार की संस्कृति के व्यापक प्रचार के कूट उद्देश्यों की शिनाख्त करता है।
सूचना-प्रौद्योगिकी के विस्तार और समाज पर पड़ने वाले उसके विस्तृत प्रभावों की समीक्षा करने के साथ 'आज का मीडिया' मीडिया के विभिन्न रूपों समाचार-पत्रों, रेडियो, सिनेमा, टीवी और इंटरनेट की विशिष्टताओं और उनकी अलग-अलग स्वतन्त्र भूमिका को भी रेखांकित करता है। यह पश्चिमी सूचना सिद्धान्तकी का पिष्टपेषण न होकर मीडिया के सम्बन्ध में एक वैकल्पिक सोच की ऐतिहासिक प्रस्तावना है।
देश के वरिष्ठ एवं जागरूक साहित्यकारों द्वारा आज के मीडिया की लोकपरक समझ बनाने की दिशा में पहली बार एक सामूहिक हस्तक्षेप।
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