Aadivasi Morcha

Hardbound
Hindi
9789350727584
1st
2014
88
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आदिवासी जनजीवन हमारी परम्परा और संस्कृति का संवाहक है। बहुमुखी बोलियों और भाषाओं से भारत देश पहचाना जाता है। प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करते हुए जंगल में रहकर प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करने वाले आदिवासी आज भी अपने गीत-संगीत, नृत्य, चित्रकला, रहन-सहन, वेश-भूषा, अलंकार, बोली- वाणी और लिपि आदि विशेषताओं को सँजो रहे हैं।


साहित्य के क्षेत्र में आज विभिन्न विधाओं पर लेखन संशोधन कार्य किया जा रहा है, कर रहे हैं। परन्तु सच्चाई यह भी है कि पौराणिक काल से लेकर आज़ादी के आन्दोलन तक आदिवासियों के बलिदान और महत्त्वपूर्ण योगदान को हमारे तथाकथित इतिहास लेखन और प्रचलित मुख्यधारा के समाज ने इन्हें असुर, दानव, राक्षस, असभ्य कहकर कोसों दूर हाशिये पर रखा । परिणामस्वरूप आदिवासी समाज भौतिक सुख-सुविधाओं से वंचित, अज्ञान- अशिक्षा, रूढ़ि- परम्परा और अन्धविश्वास के कुचक्र में फँस कर रह गया। आज तो वैश्वीकरण की अन्धी दौड़ में उसका अस्तित्व ही खतरे में आ गया है।


गुरुवर्य भगवान गव्हाडे एक संवेदनशील कवि, कहानीकार, फिल्म लेखक, शोध-निर्देशक तथा सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में कई मोर्चों पर काम कर रहे हैं। विश्वविद्यालय में अध्यापन करते-करते उन्होंने अपना सृजनात्मक लेखन भी जारी रखा है। उनकी कविताएँ एकलव्य की भाँति स्वानुभूति की भट्ठी से तपकर आयी हैं। इसीलिए उनकी कविता आदिवासी त्रासदपूर्ण जीवन के आक्रोश को व्यापक जनआन्दोलन का रूप प्रदान करती हैं और हिन्दी कविता की एक नयी परिभाषा गढ़ते हुए समसामयिक प्रश्नों पर सीधा प्रहार भी करती हैं


-करिश्मा पठाण ( युवा साहित्यकार तथा समीक्षक)

डॉ. भगवान गव्हाडे (Dr. Bhagwan Gavhade)

जन्म : 11 जून 1976, राजापुर, तहसील: औंढा (नागनाथ), जिला : हिंगोली (महाराष्ट्र) शिक्षा : एम.ए., एम.फिल., पीएच.डी., नेट (हिन्दी) प्रकाशित कृतियाँ : कमलेश्वर के उपन्यासों में नारी, समकालीन हिन्दी साहित्य : विविध

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