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Hanste Rahe Hum Udas Hokar

Hardbound
Hindi
9789390678457
176
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ये हम गुनहगार औरतें हैं

जो अहल-ए-जुब्बा की तमकनत से न रोब खायें

न जान बेचें

न सर झुकाएँ

न हाथ जोड़ें

ये हम गुनहगार औरतें हैं

कि जिनके जिस्मों की फ़स्ल बेचें जो लोग

वो सरफ़राज़ ठहरें

नियाबत-ए-इम्तियाज़ ठहरें

वो दावर-ए-अहल-ए-साज़ ठहरें

ये हम गुनहगार औरतें हैं

कि सच का परचम उठा के निकलें

तो झूठ की शाहराहें अटी मिले हैं

हर एक दहलीज़ पे सज़ाओं की दास्तानें रखी मिले हैं

जो बोल सकती थीं वो ज़बानें कटी मिले हैं

ये हम गुनहगार औरतें हैं

कि अब तआकुब में रात भी आये

तो ये आँखें नहीं बुझेंगी

कि अब जो दीवार गिर चुकी है

उसे उठाने की ज़िद न करना !

ये हम गुनहगार औरतें हैं

जो अहल-ए-जुब्बा की तमकनत से न रोब खायें

न जान बेचें

न सर झुकायें न हाथ जोड़ें!

-पुस्तक का अंश

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