‘जो कहूँगा सच कहूँगा’ में नन्ददुलारे वाजपेयी, नामवर सिंह जैसे समीक्षकों, मुकुटधर पाण्डेय, शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ मुक्तिबोध, जीवनलाल वर्मा ‘विद्रोही’ और रामविलास शर्मा जैसे कवियों, श्यामाचरण दुबे जैसे समाजशास्त्रियों एवं राजनाथ पाण्डेय जैसे अध्यापकों को स्मरण किया गया है संस्मृत के व्यक्तित्व की संरचना के समस्त तानों बानों के साथ ही नहीं, उसके कृतित्व के समीक्षात्मक आकलन के साथ भी! इस पुस्तक में लेखक ने संस्मरण-विधा के कुछ नये प्रयोग भी किये हैं -विश्वविद्यालय शोध की प्रवृत्तियों, सृजनपीठों की गतिविधियों के संस्मरण लिखते हैं। वे अपने संस्मरणों में स्वयं को भी नहीं बख्शते। आत्म स्वीकृति के संस्मरणात्मक आख्यानों में वे स्वयं दृश्य भी हैं और द्रष्टा भी । अभिनन्दन और अभिनिन्दन के खटमिट्टे स्वाद वाले ये संस्मरण श्रद्धायाफ्ता देवताओं को थोड़ा मनुष्य बनाते हैं और उपेक्षित लोगों को थोड़ा मूल्यवान।
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